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પ્રદદ
श्रात्मतत्व-विचार
मगधराज ने कहा - "धन्य प्रभो । धन्य आपकी वाणी ! आप के समागम से मेरा जीवन सफल हुआ। मुझे निस्सीम आनन्द प्राप्त हुआ । आप मेरे कल्याण के लिए दो शब्द कहने की कृपा करें।"
अनाथी मुनि ने कहा- "राजन श्री जिनेश्वर देव का शासन जयवत है । उनके उपदेश में अनन्य श्रद्धा रख, उनके प्ररूपित तत्त्वो का बोध प्राप्त कर और उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों पर कार्य करने का प्रयास कर | यही कल्याण मार्ग है । यही अभ्युदय की कुजी है । "
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इन शब्दो का मगधराज श्रेणिक पर इतना प्रभाव पड़ा कि, उसने बौद्धधर्म का त्याग कर अन्तःपुर, स्वजन और कुटुम्ब सहित जैनधर्म धारण किया । उस दिन से जैनधर्म के प्रति उनकी श्रद्धा उत्तरोत्तर बढती गयी। श्री महावीर प्रभु के समागम ने उसे वज्रलेप के समान कर दिया । आज जिन शासन में श्रेणिक राजा के सम्यक्त्व की प्रशसा होती है, पर उसकी प्राप्ति का श्रेय एक निर्ग्रन्थ मुनि को है । इसीलिए, हमारा अनुरोध है कि, मुनिवरों का सग किया करें और उनका उपदेश सुना करें ।
विशेष अवसर पर कहा जायेगा ।