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गुणस्थान
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६. अनि अहि-अनिवृत्ति बादर गुणस्थान १०. सुहमसूट मसापराय गुणस्थान ११. उपसम- उपशातमोह गुणस्थान १२. खीण क्षीणमोह गुणस्थान १३. सजोगि= सयोग केवली गुणस्थान १४. अजोगि-अयोग केवली गुणस्थान ये ही चौदह गुणस्थान है।
गुणस्थानों का क्रम जब संख्या बड़ी होती है तो उसमे आदि, मध्य और अन्त होता है। इस दृष्टि से प्रथम गुणस्थान आदि है, दो से तेरहवाँ गुणस्थान तक मध्य है और १४-वॉ गुणस्थान अन्त है। ___ कम दो प्रकार के होते हैं-एक चढता और दूसरा उतरता। अहोरात्रि, पक्ष, मास, ऋतु और वर्ष ये चढते क्रम हैं; क्योंकि उनमें कालमान उत्तरोत्तर विस्तृत ही होता जाता है और ससार, महाद्वीप, देश, प्रान्त
और जिला उतरते क्रम है, क्योंकि इनमें क्षेत्र विस्तार उत्तरोत्तर कम ही होता जाता है। इन दो प्रकारों में गुणस्थानों का क्रम आरोही है, क्योंकि उसमें आत्मा उत्तरोत्तर विकसित होती जाती है।
(१) मिथ्यात्व गुणस्थान मिथ्यात्व में रहनेवाली आत्मा की अवस्था विशेष मिथ्यात्व गुणस्थान है। यहाँ मिथ्यात्व शब्द से व्यक्त मिथ्यात्व समझना चाहिए । इस गुणस्थान में रहनेवाली आत्मा रागद्वेष के गाढ परिणामवाली होती है और भौतिक उन्नति में ही लिप्त रहनेवाली होती है- तात्पर्य यह कि उसकी सब प्रवृत्तियों का लक्ष्य सासारिक सुखों का उपभोग और उसी के लिए आवश्यक साधनों का संग्रह होता है। ऐसी आत्माएँ आध्यात्मिक विकास से पराड