________________
४४६
गुणस्थान का अन्धानुकरण करने से हम बडे नहीं हो जाते। आजकल के कुछ तथाकथित 'बड़े आदमी' सब धर्मों को अच्छा मानकर उनमें से थोड़ा-थोड़ा ग्रहण करने का परामर्श देते हैं। लेकिन, लोहा, जस्ता, सीसा, कलई, तॉबा, चाँदी आदि थोडा थोड़ा लेकर एक मे मिलाने से स्वर्ण की उत्पत्ति नहीं हो जाती । उसके लिए तो स्वर्ण के अशों को ही ग्रहण करना चाहिए। इस युग मे इस मिथ्यात्व से विशेषरूप मे बचना चाहिए । बहुधधी लोगो मै, चाहे वे निह्नव हों या उनसे भिन्न कुछ और, इस मिथ्यात्व की बहुलता होती है।
जिन्हें तत्त्व के सूक्ष्म या अतीन्द्रिय विषय में सशय हो और उस संशय का निवारण करने के लिए क्सिी सद्गुरु का सग करने की भी इच्छा न हो, वह साशयिक मिथ्यात्वी है । ___ सूक्ष्म और वादर निगोद, विकलेन्द्रिय, असज्ञी पचेन्द्रिय जीवों को और सज्ञी पचेन्द्रिय (मनुष्य, तियच ) मे से जिन जीवो ने एक बार भी सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं किया है, उन्हें अनाभोगिक मिथ्यात्व होता है। यहाँ यह स्पष्ट कर दें कि सज्ञी पचेन्द्रिय जीवो मे जिन जीवों को एक बार भी सम्यग्दर्शन प्राप्त हो गया हो और जिन्होंने पुनः मिथ्यात्व प्राप्त किया हो, उन्हें इस मिथ्यात्व के अतिरिक्त कोई अन्य मिथ्यात्व होता है।
काल की अपेक्षा से मिथ्यात्व तीन प्रकार का है : (१) अनादिअनन्त, (२) अनादि-सात और (३) सादि-सान्त । इनसे भी हम परिचित हो लें।
अभव्य आत्मा को मिथ्यात्व अनादि काल से होता है और वह कभी दूर नहीं होता; इसलिए उनका मिथ्यात्व अनादि-अनंत कहा जाता है। जाति भव्य के अतिरिक्त भव्य आत्माओं को मिथ्यात्व अनादि काल से होता है, पर उसका अन्त है, इसलिए वह अनादि-सांत है । और, जो भव्य
२९