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अात्मतत्व-विचार
"तुम कैसे ले जाओगे? इसका मालिक तो मैं हूँ'-अभी ये गन्द बाबाजी के मुंह से निकल भी न पाये थे कि, उनके सर पर तलवार तुल गयीं और उनके शरीर के टुकड़े हो गये ।। __इस प्रकार सोने की पाट ने तीन आदमियों का मोग लिया और उनमे से कोई उस पाट का एक टुकड़ा भी न पा सका। ____ अपने रास्ते का कॉटा दूर हुभा देखकर चोर बडे प्रसन्न हुए और यह सोच कर कि अब जिन्दगी भर चोरी करने की अपेक्षा नहीं रहेगी, वे
आनन्द से फूले न समाये । लेकिन, अब सवाल सामने आया कि, इस पाट को ले किम तरह जायें ? टुकड़े किये बिना तो ले नाना मुमकिन ही नहीं था, इसलिए उन सबने उसके टुकडे करने का निश्चय किया। पर, उनके पास ऐसा कोई साधन नहीं था कि, जिससे टुकड़े कर सकते । उस समय उन्हें पास के गाँव मे रहनेवाला सुनार याट आया। वह सुनार इन चोरो से चोरी की चीजें सस्ते भाव से खरीद लिया करता था। इस प्रकार उससे मैत्री हो गयी थी।
चार चोर उस पाट को रखवाली करते रहे और दो सुनार को चुलाने गये। उन्होने सुनार को सोते से जगाया । चोरो ने कहा - "तुम्हारे पास छेनी, हथौड़ा, वगैरह जो औजार हों लेकर चलो। सोने की पाट के टुकड़े करना है।' फिर, उन्होंने सोने की उस पाट का वर्णन किया । पहले तो सुनार को विश्वास न हुआ, पर चोरो के विश्वास दिलाने पर उसने बात मान ली।
"उसमे मुझे क्या मिलेगा ?"--सुनार ने जिज्ञासा से प्रश्न किया। चोरों ने कहा-"६ जन हम है, सातवाँ तू । सब बराबर बराबर बॉट लेंगे।"
यह सुनकर सुनार ने विचार किया-"ये परदेशी चोर एक भाग भी क्यो ले जाये ?” उसके मन में फपट जागा। उसने उन्हे एक भी टुकड़ा न देने का निश्चय कर लिया और कहा-"तुम ठीक कहते हो,