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छब्बीसवाँ व्याख्यान कर्मबन्ध और उसके कारणों पर विचार
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महानुभावो!
__ कल व्याख्यान के बाद एक महाशय हमसे मिलने आये। उन्होंने मुझसे एक प्रश्न पूछा-"कर्म आत्मा से क्यों चिमटते हैं, शरीर से क्यों नहीं ?' हमने कहा-"आपका प्रश्न ठीक है। पर, लोग देवगुरु को ही क्यों पचाग-प्रणिपात करते हैं, और आपको नहीं करते। इस पर विचार करेंगे, तो आपको अपने प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा।"
कुल देर विचार करने के बाद उक्त महाशय ने कहा-"मेरी उस प्रकार की योग्यता नहीं है, इसलिए लोग मुझे पचाग-प्रणिपात नहीं करते।” मैंने कहा-"यही न्याय यहाँ लागू कीजिए । शरीर की वैसी योग्यता नहीं है, इसलिए उसे कर्म नहीं चिमटते।" मैने उन्हें उदाहरणरूप मे बताया-"चुम्बक से लोहे के टुकड़े चिमट जाते हैं, लेकिन लकड़ी या रबर से नहीं। इससे यही समझना चाहिए कि, जैसा स्वभाव हो वैसी क्रिया होती है।
उक्त महाशय ने कहा-'अगर चिमटना कर्म का स्वभाव है, तो वह आत्मा से भी चिमटेगा और शरीर से भी। आत्मा से चिमटे और शरीर से न चिमटे, ऐसा विवेक तो वह कर नहीं सकता, कारण कि वह स्वय जड़ है।"
हमने पूछा-"कर्म क्या है- यह तो आप जानते हैं ?" - २५