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कर्मबंध और उसके कारणों पर विचार
४३१ चाला तथा निरभिमानतापूर्वक रहनेवाला उच्च गोत्र बाँधता है; और दूसरे के दोष देखनेवाला, “दूसरे के दोष प्रकट करनेवाला तथा मदअहकार करने वाला नीच गोत्र बॉवता है। भगवान् महावीर ने मरीचि के भव में कुलमद किया, जिससे नीच गोत्र धा और वह करोड़ों वर्षों के बाद भी उदय में आया । उनका जीव अन्तिम भव में प्राणत स्वर्ग से च्यव कर देवानदा ब्राह्मणी की कोख में अवतरित हुआ। बाद में उस गर्भ का परावर्तन हुआ और वे त्रिशला क्षत्रियाणी जी की कुक्षि से अवतरित हुए, लेकिन पहले नीच गोत्र मे यानी भिक्षुक के कुल मे अवतरित होना ही पड़ा।
पठन-पाठन की भावनावाला तथा श्री जिनेश्वर देव आदि की भक्ति करनेवाला उच्च गोत्र बांधता है और उससे विरुद्ध वर्तन करनेवाला नीच गोत्र बाँधता है।
कर्मबन्धन के ये विशेष कारण हैं और वे स्पष्ट मार्गदर्शन करते हैं कि, मनुष्य को किस प्रकार वर्तन करना चाहिए।
विशेष अवसर पर कहा जायेगा!