________________
आठ फरण
४३७
कुबेरदत्ता साध्वी ने कहा-"हमें रहने के लिए जगह चाहिए।" इस पर कुबेरमेना ने कहा-"मैं वेश्या हूँ, पर फिलहाल एक भर्तार के योग से कुल-स्त्री का जीवन बिता रही हूँ। आप मेरे घर के एक भाग मे सुख से रहें और हमे अच्छे आचार में लगायें । __कुवेरसेना ने उनको जगह दे दी और कुबेरदत्ता साध्वी आदि उसमे रहकर धर्मध्यान-धर्मोपदेश करने लगीं। इस तरह दोनों के दिल खून मिल गये। एक बार कुबेरसेना अपने पुत्र को पालने मे लिटा कर घर के काम मै लग गयी। लेकिन, माता के दूर जाने से पुत्र रोने लगा। तब कुरदत्ता साध्वी ने उसे चुप करने के लिए लोरी गाकर कहने लगी कि "हे भाई । तू रो मत ! हे पुत्र ! तू रो मत । हे देवर ! तू रो मत । हे भतीजे । तू रो मत । हे काका ! तू रो मत । हे पौत्र ! तू रो मत ।।
ये शब्द पास के कमरे में बैठे हुए कुबेरदत्त ने सुने । सुनकर वह चाहर आया और कहने लगा-"आपको ऐसा अयोग्य बोलना शोभा नहीं देता। तब कुबेरदत्ता साध्वी ने कहा-"महानुभाव ! मैं अयोग्य नहीं बोलती, बल्कि यथार्थ बोल रही हूँ। असत्य बोलने का मुझे त्याग है।" ___कुबेरदत्त ने पूछा-"आपने जो रिश्ते कहे, क्या वे इस पुत्र में सभव भी हैं ?"
कुबेरदत्ता ने कहा-"हाँ, सभव है, इसीलिए तो कहती थी । सुनो। इन रिश्तों को : (१) इस बालक की और मेरी माता एक ही है, इसलिए यह मेरा भाई है। (२) वह मेरे भर्तार का पुत्र है, इसलिए मेरा पुत्र है। (३) वह मेरे भर्तार का छोटा भाई है, इसलिए मेरा टेवर है । (४) वह मेरे भाई का पुत्र है, इसलिए मेरा भतीजा है । (५) वह मेरी माता के पति का भाई है, इसलिये मेरा काका है। और (६) मेरी शोक्य ( सौत ) के पुत्र का पुत्र है इसलिए मेरा पौत्र है !"