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पाठ करण
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सुबह होने पर पेटी शौर्यपुर नगर में आयी और वहाँ स्नान करते हुए दो सेठों की दृष्टि उस पर पड़ी। उन्होने उसे बाहर निकाला। एक ने लड़का और दूसरे ने लड़की ले ली। उन्होने बालकों को ले जाकर अपनी पत्नियो को सौपा और मुद्रिका के अनुसार ही उनके नाम रखे । चयस्क हो जाने पर उन्हें वे मुद्रिकाएँ पहना दी गयीं।
कुबेरदत्त का पालक पिता उसके लिए कन्या की खोज करने लगा और कुबेरदत्ता का पालक पिता उसके लिये योग्य वर खोजने लगा। लेकिन, उन्हें योग्य कन्या या वर नहीं मिला, इसलिए उनके पालक-पिताओ ने उन दोनों की धूमधाम से शादी कर दी और अपनी जिम्मेदारी का भार हलका कर लिया। ___ बराबर की जोड़ी थी; इसलिए दोनों को आनन्द हुआ। रात को सोगठा वाजी खेलने बैठे। उस वक्त एक सोगठी जोर से मारते वक्त कुबेरदत्त की अंगूठी सरक गयी और कुबेरदत्ता की गोदी में जा पड़ी। कुबेरदत्ता ने उसे उठाकर अपनी उँगली में पहिन ली। उसने देखा कि, दोनों अंगूठियाँ एक सी हैं। दोनों के अक्षरों की वनावट भी समान थी। कुबेरदत्ता मन मे समझ गयी-"कुबेरदत्त अवश्य ही मेरा सगा भाई है और उसके साथ मेरा विवाह हो गया है। यह बहुस ही बुरी चात हुई है।”
उसने दोनों अगूठियाँ कुबेरदत्त के सामने रखीं। उसे भी दोनों समान लगी । वह भी समझ गया-"कुवेरदत्ता मेरी सगी बहिन है और उसके साथ मेरा विवाह हो जाना अत्यन्त अनुचित हुआ है।"
तब उन्होंने अपने पालक-माता पिताओं से शपथ दिलाकर अपनी उत्पत्ति पूछी । उन्होंने सारी बात सच सच सुना दी । कुबेरदत्त के पालकपिता ने यह भी बता दिया कि, उसने निरुपाय होकर वैसा किया था । उसने सुझाया-"अभी कुछ नहीं बिगड़ा । सिर्फ हस्तमिलाप हुआ है । इसलिए इस विवाह को रद्द करके दूसरी कन्या से तेरी शादी कर दी