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कर्मवन्ध और उसके कारणों पर विचार
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कर दे कि 'आज से पाप का त्याग करता हूँ', तो तब से उसे पाप लगना चन्द हो जायेगा। और, उसकी आध्यात्मिक प्रगति का मार्ग प्रशस्त हो जायेगा।
तीन प्रकार के पुरुष पाप को कुछ लोग अपने या दूसरे के अनुभव से छोड़ते हैं। कुछ लोग गुरुजन आदि के उपदेश से छोड़ते हैं, जबकि कुछ लोग ऐसे हैं कि उसे छोड़ते ही नहीं । यहाँ हमें एक प्रसिद्ध श्लोक याद आता है
पापं समाचरति वीतघृणो जघन्यः प्राप्यापदं सघृण एव विमध्यबुद्धिः। प्राणात्ययेऽपि न हि साधुजनः स्ववृत्तं,
वेलां समुद्र इव लङययितुं समर्थः ॥ -जो लोग जघन्य, कनिष्ठ या अधम कोटि के हैं, वे पाप का आचरण बिना घृणा माने, बेधड़क करते हैं। जो लोग मध्यम कोटि के हैं, वे कोई आफत आ पड़े और दूसरा उपाय न हो तभी पाप का आचरण करते हैं। और, जो साधुजन हैं, अर्थात् उत्तम कोटि के हैं; वे प्राणत्याग का प्रसंग आने पर भी अपनी उत्तमता वैसे ही नहीं छोड़ते, जैसे कि समुद्र अपनी मर्यादा नहीं छोड़ता।
नीतिकारों ने उत्तम, मध्यम और जघन्य पुरुषों की निम्नलिखित व्याख्या भी की है । वे कहते हैं
उत्तमो सुखिनो बोध्याः, दुखिनो मध्यमाः पुनः ।
सुखिनो दुःखिनो वाऽपि, बोधमर्हन्ति नाधमाः ॥ ----उत्तम पुरुष सुख से बोध पाते हैं, मध्यम पुरुष दुःख से बोध पाते हैं, लेकिन अधम पुरुष न सुख से बोध पाते हैं और न दुःख से ।