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श्रात्मतत्व-विचार
कर्मबन्ध के सामान्य कारण चार है - मिध्यात्व, अविरति, कपाय और योग । सामान्य रूप मे उनका निक्र हो चुका है । अब उन पर विशेष विवरण करेंगे ।
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ऐसे तो आठो कर्म आत्मा के शत्रु हैं, पर इन चार कर्मों की शत्रुता वोरतर है । वे आत्मा के स्वभाव पर सीधे आक्रमण करते है और उनके कारण आत्मा मे अज्ञान, मोह ( राग-द्वेष - कपाय ) वीर्य की कमी आदि अनेक टोप दृष्टिगोचर होते हैं । इन कमों के जैसे नाम है, ठीक उसी के अनुरूप उनके गुण हैं । इन कर्मों को 'घाती' कर्म कहते हैं-घाती का अर्थ हुआ 'घातक' अथवा घात करनेवाले ।
एक बार एक मिल-मालिक ने जहर डालकर लड्डु, खिलाकर कितने ही कुत्तों को मार डाला । इस सम्बन्ध में एक पत्र ने टीका की कि, यह करपीण कृत्य है । करपीण अर्थात् घातकी । मिल-मालिक को यह बात बड़ी बुरी लगी और उसने उसके विरुद्ध अदालत में दावा कर दिया । अदालत ने फैसला किया कि, जहर मिला लड्डू खिलाकर कुत्तों को मारना करपीण-कार्य नहीं है, क्योंकि, इससे कुत्ता जल्दी मर जाता है । यदि कुत्ते को रिघा रिघा कर मारा जाता तो करपीण कार्य होता । पत्रकार द्वारा प्रयुक्त 'करपीण' शब्द अपमानकर है । और, इस कारण उसे अमुक दण्ड दिया जा रहा है । कहने का तात्पर्य यह है कि, सैकड़ों कुत्तों का वध करने वाला भी अपने को घातकी कहे जाने के लिए तैयार नहीं है ।
पर इसके लिए किसी अदालत
।
यदि वह कहीं
चार कर्मों को हम घातकी कहते है, मैं कोई मुकदमा जायेगा, ऐसी आशका न करनी चाहिए धर्मराज के न्यायालय में दावा करे तो हम कह सकते हैं निश्चय ही घातकी है। इसका कारण यह है कि, ये कर्म मनुष्य के गुणों का घात करते हैं और किसी समय आत्मा को नहीं छोड़ते ।
कि, ये कर्म
यदि क्षणमात्र के लिए आत्मा इनके पंजे से मुक्त हो जाये, तो फिर वह उसके चगुल में नहीं आने वाला है । औरगजेत्र द्वारा विछायी नाल मे