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आत्मतत्व-विचार
वेदनीय कर्मवन्धन के विशेष कारण वेदनीय कर्म दो प्रकार के होते हैं-(१) साता और (२) असाता । साता से सुख का और असाता से दुःख का अनुभव होता है। __ पाप को जीतनेवाला, आती हुई कषायो को रोकनेवाला और उनका दमन करनेवाला सातावेदनीय कर्म बॉधता है। जो सुपात्रदान भाव से अनुकम्पा-दान देता है, वह भी साता वेदनीय कर्म बॉधता है। संगमक ने सुपात्र मुनि को भावपूर्वक क्षीर का आहार दिया, तो दूसरे भव मे वह गोभद्र सेठ के यहाँ शालिभद्र के रूप में जन्मा और अतुल ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी हुआ।
ढीले परिणामवाला धर्मी असातावेदनीय कर्म बाँधता है और दृढव्रती सातावेदनीय कर्म बॉधता है। चकचूल ने चार सादा व्रतों का दृढ़तापूर्वक पालन किया, तो बारहवें स्वर्ग का आयुष्य बॉधा |- जिसकी श्रद्धा दृढ़ होती है, वही व्रतपालन में दृढता रख सकता है। इसलिए, श्रद्धा दृढ रखनी चाहिए और श्री जिनेश्वर भगवन्त ने जो कहा है, वही सत्य है, ऐसा मानना चाहिए। इससे सातावेदनीय कर्म का बन्ध होगा। ___जो गुरु-निन्दक है, लोभी है; हिंसक है, अव्रती है, अशुभ अनुष्ठान करता है, कपायों से पराजित हो गया है तथा कृपण है, वह असातावेदनीय कर्म का बन्ध करता है।
देव और मनुष्य में प्राय. साता का उदय होता है, और तिर्यंच तथा नारकी मे प्रायः असाता का उदय होता है । यहाँ प्रश्न होता है कि, मनुष्य में असाता का उदय कैसे दिखायी देता है ? उसका उत्तर है-“कर्मभूमि पन्द्रह है। और, अकर्म-भूमि तीस । अकर्म-भूमि के युगलिया सुखी हैं, क्योकि उन्हें वाछित वस्तुएँ कल्पवृक्षों से मिल जाती है। कर्म भूमि के लोग दुःखी हैं । भरत और ऐरावत क्षेत्र में अठारह कोड़ाकोड़ी सागरोपम समय सुख का है और सिर्फ दो कोडाकोड़ी सागरोपम समय