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कर्मवन्ध और उसके कारणों पर विचार
३९३ रुद्राचार्य के कुछ शिष्य लघुनीति करने उठे। उस समय पैरों के नीचे कोयलो के दबने मे -धूं की आवाज होने लगी। उन्होने समझा"निश्चय ही हमारे पैरो के नीचे कोई त्रस जीव कुचल गये। हा हा । धिक्कार हो हमारे इस दुष्कृत्य को" और, वे उसका प्रतिक्रमण करने तैयार हुए। यह देखकर सूरिजी के शिष्यों को विश्वास हो गया कि, ये साधु भवभीरु और सुविहित हैं।
कुछ देर बाद रुद्राचार्य स्वय लधुनीति करने उठे । उनके पैरो के नीचे कोयलों के दबने से वही चूँ चूँ की आवाज होने लगी। उससे वे समझे कि कोई त्रसजीव मेरे पैरों के नीचे कुचल गये हैं। परन्तु, उस दुष्कृत्य का पश्चाताप करने के बजाये वे और ज्यादा जोर से पैर रखकर बोले “ये किसी अरिहत के जीव पुकारते मालूम होते हैं।" ___ सूरिजी के शिष्यों ने ये गन्द कानों से सुने, इसलिए उन्हें विश्वास हो गया कि, यह आचार्य अभव्य है, अन्यथा उनका वर्तन ऐसा निष्टुर न होता । जिन आत्माओं को अरिहत देव में श्रद्धा नहीं है, उनके प्रवचन में श्रद्धा नहीं है और उसमे प्ररूपित अहिंसा, सयम और तप की मगल. मयता में भी श्रद्धा नहीं है, उनमें सम्यक्त्व कैसे हो सकता है ?
सबेरे श्री विजयसेन सूरि ने द्राचार्य के शिष्यों से कहा "हे श्रमणों । तुम्हारा यह गुरु सेवा योग्य नहीं है, कारण कि वह कुगुरु है । यह बात मुझे तुमसे इसलिए कह्नी पड़ती है कि, आचार-भ्रष्ट आचार्य, भ्रष्ट आचारवाले को न रोकनेवाला आचार्य और उन्मार्ग प्ररूपणा करनेवाला आचार्य, ये तीनों धर्म का नाश करते हैं।" ___ यह हित-शिक्षा सुनकर, जैसे साँप केंचुली का त्याग कर देता है उसी तरह उन शिष्यों ने अपने गुरु का त्याग कर दिया और शुद्ध चरित्र का पालन कर अनुक्रम से मोक्ष की प्राप्त की। अंगारमर्दक रुद्राचार्य सम्यक्त्व के अभाव से, अन्तर की गहरायी में भरे हुए मिथ्यात्व के योग से , अपार