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आत्मतत्व-विचार आठ प्रत्येक प्रकृति मे उपघात के अतिरिक्त सातों प्रकृतियाँ शुभ हैं ।
इससे आप भली भाँति समझ गये होंगे कि कर्मों की शुभ-अशुभ प्रकृतियाँ कौन-कौस-सी हैं । जो पुण्य करते हैं, उन्हे शुभ प्रकृति का वध होता है और जो पाप करते हैं, उन्हे अशुभ प्रकृति का वध होता है । इसलिए, जो लोग जीवन में सुख, शाति और खुशहाली की इच्छा रखते हों उन्हें पाप का परिहार करना चाहिए। इस विषय में अभी बहुत कुछ कहना है, वह अवसर पर कहा जाएगा।
शुभ
। नाम कर्म की शुमाशुभ प्रकृति की तालिका निम्न प्रकार हे :
अशुभ २ गति (देव-मनुष्ध]
२ गति ( तिर्यञ्च-नरक) १ जाति ( पचेन्द्रिय)
४ जाति ( एक-इन्द्रिय से चार
इन्द्रिय) ५ शरीर ( श्रीदारिक) ३ अगोपाग (औदारिकादि ) १ सहनन ( वज्र ऋषभनाराच ) ५ सहन्न (ऋपमनाराच, नाराच,
अर्धनाराच, कीका और सेवार्त) १ सस्थान ( समचतुरस्र)
५ सस्थान ( नयग्रोध परिमडल,
सादि, वामन, कुब्ज और हुंडक ) ४ वर्ण, रस, गध और स्पर्श
४ वर्ण, रस, गध और स्पर्श २ श्रानुपूर्वी ( देवानुपूर्वी तथा २ प्रानुपूर्वी ( तिर्थचातुपूर्वी तथा मनुप्यानुसूवी ]
न रकानुपूर्वी ) १ विहायोगति
१ विहायोगति १० सदशक
१० स्थावर दशक ७ प्रत्येक प्रकृति [अगुरुलघु, पराघात, १ प्रत्येक प्रकृति [ उपघात ] आतप, उद्योत, श्वामोच्छवास, निर्माण ३४ और तीर्थकर]
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