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आत्मा की शक्ति
२०७ नाग कर देगा। इसलिए राम-भक्ति वग, आना का उल्लघन करके, रावण की साधना मे तरह-तरह के विघ्न डालने लगे। पर, इससे रावण डिगा नहीं । जो रावण हजार विद्याएँ साधते वक्त देवो और देवियो के समूह से नहीं डिगा, वह इन लोगों में क्या डिगाया जा सकता था।
मढोढरी रोज रावण के पास बैठती । अगट आदि अन्तिम प्रयास मे उस भूगर्भखंड मे पहुँच गये। और, वे मटोदरी के बाल पकड कर उसे रावण के सामने घसीटने लगे। एक राजा की रानी का, प्रतिवासुदेव की अर्धागिनी का, ऐसा अपमान कौन सहन कर सकता है ? ऐसे समय कोई भी तप या साधना छोड़कर क्रोध के आवेश में आ जाता और इस तरह अपमान करनेवाले का सर धड़ से पृथक कर डालता। पर, यह तो रावण था । वह जरा भी चलायमान नहीं हुआ। उसी समय उसे बहुरूपिणी-विद्या सिद्ध हो गयी । यह जानते ही अगद आदि वहाँ से पलायमान हो गये।
बहुरूपिणी-विद्या ने प्रसन्न होकर रावण से जो चाहिए सो मॉगने के लिए कहा । रावण के हर्ष का पार न रहा । उसने कहा- "मैं बुलाऊँ तब आना" फिर रावण सीता के पास गया और अपनी शक्ति का वर्णन करके कहने लगा-"मेरी इस शक्ति से अब तेरे राम-लक्ष्मण और उनकी सेना जीती नहीं बच सकती । मैं तुझे अपनी बनाऊँगा, मेरे साथ विवाह कर।"
परन्तु सीता महासती थी। वह उसकी बात क्या स्वीकार करती ! उसे तो ये शब्द सुनते ही मूर्छा आ गयी। उधर राम की सेना मे रावण की इस सिद्धि का समाचार पहुंचते ही हाहाकार मच गया । पर, रामलक्ष्मण का रोम भी नहीं फड़का। ___ जब तक रावण विद्या साधता रहा, लडाई बंट रही, क्योकि यह तो नीति का युद्ध था । अब रावण लड़ाई में फिर उतरा और जोरशोर से लड़ने लगा । रावण मदान्ध बना हुआ था। उसने लक्ष्मण के साथ युद्ध