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श्रात्मसुख
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पाँच लाख से बढकर दस लाख हो गये, उस समय उसके आनन्द का क्या पूछना | पर, कुछ दिनो बाद धन की हानि होने लगी । घटतेघटते पाँच लाख रह गये । तब वह आदमी बडा दुःखी हुआ और सख्त बीमार पड़ गया । पहले जिन पाँच लाख से आनन्द हुआ, अब उन्हीं पाँच लाख से दुःख हुआ । तो फर्क कहाँ पड़ा ? पहले उसे लगा कि 'मेरा धन बढ रहा है', अब लगा कि 'धन घट रहा है।' इसलिए अन्तर केवल कल्पना का था । सुख - दुःख उसकी कल्पना के ही थे । सुख अगर पॉच लाख में होता, तो उसे अब भी होना चाहिए था ।
शादी होने पर लोग खुशियाँ मनाते हैं । वर-वधू को आनन्द की सीमा नहीं होती । एक दूसरे को सुख का कारण मानते हैं, पर कुछ दिनों बाद अकिंचन बात पर झगड़ा करने लगते हैं । बोलचाल बद हो जाती है। एक-दूसरे को देखे बुरा लगता है। अगर पति और पत्नी ही सुख का कारण हो, तो दोनो मौजूद हैं। फिर भी यह हालत क्यो ? भर्तृहरि को पहले पिंगला के प्रति कितना प्रेम था। लेकिन, वही पिंगला जन्त्र अश्वपालक से आसक्त हो गयी, तो भर्तृहरि का दिल टूट कर टुकडेटुकड़े हो गया । उसे संसार से विरक्ति हो गयी । किसी स्त्री के प्रति रागासक्त आदमी उसे देखकर जीवन को सफल मानता है, उसके सयोग मैं सुख मानता है, लेकिन वही आदमी जब किसी और स्त्री पर आसक्त हो जाता है, तब पहली देखे बुरी लगती है । स्त्री वही है, पर दिल बदल गया । अब प्राणप्यारी दूसरी हो गयी । इसमे क्या बदल गया, इस पर विचार कीजिये |
पुत्र जन्मने पर अत्यन्त आनन्ददायक लगता है । वही पुत्र बड़ा होकर अविनयी और उद्धत हो जाय या अपने स्वच्छन्दीवर्तन से कुल को कलंक लगावे तो पिता को कितना दुःख होता है ।
पुत्र अच्छा हो, उस पर बड़ा राग हो, उसके बिना अच्छा न लगता हो, उसे देखकर आनन्द होता हो, पर किसी कारण से दूसरी शादी हो