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आठ कर्म
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करना, दूसरे जीवो का दान लाभ- भोग-उपभोग में अन्तराय करना, -मत्रादिक के प्रयोग से दूसरे का वीर्य हनना, छेदन - भेदनादि से दूसरे की इन्द्रियो की शक्तियों का नाश करना, आदि कारणो से अन्तराय कर्म का चन्च होता है ।
इस तरह आठ कर्मों की उत्तर प्रकृतियाँ १५८ हुई । उनकी तालिका यहाँ दी जाती है
ज्ञानावरणी
दर्शनावरणी
वेदनीय
मोहनीय
आयुष्य
नाम
गोत्र
अन्तराय
कर्म की उत्तर प्रकृति
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ܙܙ
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२
२८
१०३
२
५
कुल
१५८
आठ कर्मों में से ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तराय ये चार कर्म घाती कहलाते हैं, कारण कि वे आत्मा के मूल गुणो — ज्ञान, दर्शन, क्षायक सम्यक्त्व तथा चारित्र और वीर्य का घात करते है । शेष -चार कर्म – वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र अघाती कहलाते हैं, कारण कि वे आत्मा के मूल गुणो का घात नहीं करते ।
आत्मा की सच्ची लड़ाई घाती कर्मों के साथ ही है । घाती कर्म दूर हो जाये तो केवलज्ञान और केवलदर्शन प्रकट हो जाये तथा वह आत्मा अवश्य मोक्ष जाये । शेष चार कर्मों का अन्त समय पर नाश हो जाय ।
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कर्मों के सम्बन्ध में अभी बहुत कहना है, वह अवसर पर कहा जायगा ।
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