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आत्मतत्व-विचार
निमित्त शकुन; लेकिन अगर उस समय आपका श्वास बायाँ चल रहा हो तो फल न होगा और दायाँ चल रहा होगा तो फल अधिक मिलेगा । मान लीजिये, दो व्यक्तियों को दाहिना स्वर चल रहा है और शकुन होता है, फिर भी पूरक स्वर वाले को रेचक स्वर वाले की अपेक्षा अधिक फल मिलेगा।
यहाँ यह भी जानना आवश्यक है कि, दोनों को स्वर हो, पूरक हो फिर भी पृथ्वी आदि तत्त्व भिन्न हों तो भिन्न फल मिलेगा। ये बड़ी बारीक बातें है, सामान्य आदमी समझ नहीं सकता । इसलिए, शास्त्रकारो ने कहा है कि, चित्त का उत्साह सबसे बढकर है। वह दिल की साक्षी देता है। शुभ-अशुभ करनेवाले कर्म है और कर्म के ही कारण अच्छे या बुरे निमित्त मिलते हैं।
हितशिक्षा अब मूल विषय पर आयें ! कर्म के उदय और विपाक से हमें सुख या दुःख होता है । हमे सुख मे प्रसन्न और दुःख मे खेदयुक्त नहीं होना चाहिए, क्योकि दोनो कर्मजन्य हैं । अगर सुखी आदमी अपने से अधिक सुखी आदमी की ओर दृष्टि रखे, तो उसे गर्व न हो। और, दुःखी अगर अपने से अधिक दुःखी की तरफ देखे, तो उसे दुःख न लगे। यहाँ शानदशा की आवश्यकता है। __ हर्ष और शोक दोनों में आत्त ध्यान है और वे दोनों दुर्गति मे ले जाते हैं। जब हर्ष और शोक दोनों में समभाव रहे, तभी समझना कि, आत्मा अपने स्वभाव में है।
विशेष अवसर पर कहा जायगा ।