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कर्म की शुभाशुभता
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सेठ ने कहा-"मगर आप यहाँ रहेगी किस तरह ?" ___ उत्तर में लक्ष्मी ने बतलाया-"कल सुबह मेरे मन्दिर मे जाना । वहाँ तुझे एक अवधून-जोगी मिलेगा। उसे घर लाना और अच्छी तरह जिमाना । जब वह जाने लगे, तो उसे लकड़ी मार कर गिरा देना। वह सोने का पुरुप हो जायगा । उसे घर में रखना । जब जरूरत पड़े उसके हाथ-पैर काट लेना और उस सोने का उपयोग करना । उस सोने के पुरुष के हाथ पाव फिर आ जायेंगे।" इतना कहकर देवी अन्तर्धान हो गयी।"
। दूसरे दिन सेठ ने देवी के कथनानुसार किया तो उसे स्वर्ण पुरुष की "प्राप्ति हो गयी और वह उसे उठा कर अन्दर के खण्ड मे ले गया।
सेठ के यहाँ एक नाई हजामत करने के लिए रोज आता था। उसने यह सब आँखों से देख लिया, इसलिए उसने सोचा-"मैं भी ऐसा करूँ
और दौलतमन्द बन जाऊँ ।' दूसने दिन उसने अपनी पत्नी को सुन्दर रसोई बनाने का हुक्म दिया और नहा-धोकर लक्ष्मी के मन्दिर मे गया। पर, वहाँ कोई अवधूत-जोगी नहीं मिला । तीसरे दिन भी उसने उसी प्रकार किया। इस तरह २६ दिन गुजर गये । तीसवें दिन उसने मन्दिर में एक बाबा को बैठा देखा । वह बहुत खुश हुआ और उसने उसे जीमने का निमत्रण दिया। बाचा जो को तो सब समान थे। उन्होंने निमत्रण स्वीकार कर लिया । नाई ने बाबानी को घर लाकर अच्छी तरह जिमाया और जब उसने जाने के लिये कदम उठाया कि लकड़ी मार 'कर गिरा दिया।
बाबाजी ने शोर मचाया तो बहुत से लोग इकटे हो गये । सिपाही भी आ गये। उन्होंने नाई को पकड़ा और राजा के सामने पेश किया।
नाई ने स्वय देखी हुई सारी बात राजा को कह सुनायी। राजा ने खातरी करने के लिए कुबेर सेठ को बुलाया। उसने भी अथ-से-इति तक सारा किस्सा कह सुनाया । राजा को यह जान कर बड़ी खुशी हुई कि, उसके राज्य में ऐसे पुण्यशाली बसते हैं । उसने कुवेर सेठ का बड़ा सत्कार