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कर्म की शुभाशुभता
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और मिश्र - मोहनीय की गणना नहीं होती, इस प्रकार २६ प्रकृतियों ये हुई । १६+२६ = ४२ | आयुष्य कर्म की चारो प्रकृतियो की गणना वध मे होती है, इम प्रकार ४२ + ४ = ४६ हुई । नामकर्म की उत्तर प्रकृतियाँ १०३ हैं । उनमें से ६७ प्रकृतियाँ ही वध मे गिनी जाती हैं । वर्ण, गध, रम और स्पर्श की कुल २० प्रकृतियाँ है, लेकिन यहाँ उनकी मूल प्रकृति की यानी वर्ण, गध, रस और स्पर्श की एक-एक प्रकृति ही गिनी जाती है । इस प्रकार १६ कम हो गई । इसके उपरात पन्द्रह बन्धन और पॉच सघात की प्रकृतियाँ नहीं गिनी जातीं, इस प्रकार कुल ३६ कम हुई । १०३ – ३६ = ६७ । अत्र ४६ में ६७ नोड़ देने पर ११३ होती हैं । इनमे गोत्र की २ और अन्तराय की ५ उत्तर प्रकृतियों के मिलने पर कुल संख्या १२० होती है ।
शुभाशुभ की गणना में १२४ प्रकृतियॉ ली जाती है । उसका कारण यह है कि, ऊपर जो वर्णं, गध, रस और स्पर्श की एक-एक प्रकृति गिनी गयी है, उसके शुभाशुभ की दृष्टि से दो-दो विभाग हो जाते है, अर्थात् चार प्रकृतियाँ बढ़ जाती है । इस तरह शुभाशुभ की गणना में १२४ प्रकृतियों का हिसाब है |
इन १२४ प्रकृतियो में ४२ शुभ हैं और ८२ अशुभ | वह किस प्रकार १ यही बात आज आपको समझानी है ।
चार घातिया कर्मों की ४५ अशुभ प्रकृतियाँ
आत्मा स्वभाव से अनन्त ज्ञानी है, परन्तु ज्ञानावरणीय कर्म उसके ज्ञान को दबाता है, इतना अधिक दबाता है कि, उसका अनन्तवाँ भाग ही खुला रहता है । अगर कर्म का वश चले, तो आत्मा को बिलकुल जड़ चना दे, पर इतनी हद तक उसका वश नहीं चलता है । हमने प्रारम्भ मे ही कहा है कि, एक द्रव्य बदलकर दूसरा नहीं हो जाता, इसलिए वैसा