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प्रात्मतत्व-विचार
प्रश्न--क्या तिर्यचों को शुभ अव्यवसाय होते है ?
उत्तर-हॉ, निमित्त मिलने पर तिर्वचों को भी शुभ अत्यवमाय जाग्रत होते हैं । शास्त्रो में इसके अनेक उदाहरण दिये है। उनमें से एक यहाँ दिया जाता है। __नट मणियार पहले समकिती या। बाद में निर्गथ-गुम्ओ के परिचय मे न रहने के कारण और मिथ्यात्वियो के विशेष ससर्ग के कारण वह मिथ्यात्वी हो गया । उसने कुँवा-बावड़ी बनवाने में और लोगो को अन्नजल-दान करने में आत्मा का उद्धार माना । भूखे को अन्न और प्यासे को पानी देना पुण्य का काम है; लेकिन अगर आत्मा का उद्धार करना हो; आत्मा को कमा की कुटिल जजीरो में से मुक्त करना हो तो सवर
और निर्जरा अर्थात् सयम और तप का मार्ग ग्रहण करना चाहिए। लेकिन, इस बात में उसकी श्रद्धा नहीं रही । उसने अपनी मान्यतानुसार एक सुन्दर बावड़ी बनवायी और उसके इर्द-गिर्द अन्नछत्र, आरामगृह, आदि बनवाये । धीरे-धीरे उसे उस बावड़ी पर आसक्ति हो गयी और अन्त समय भी उसका मन उस बावड़ी में डूबा रहा । इसलिए, मरने पर वह उसी बावड़ी में मंढक बनकर उत्पन्न हुआ ।
वह मेढक पानी के मल आदि पर जीकर अपना काल-यापन करता रहा । एक दिन उसने बावड़ी में पानी भरने आनेवाली पनिहारियो के मुख से सुना कि श्रमण भगवान् महावीर निकट में पधारे हैं और उनके दर्शन करने हजारो आदमी जा रहे हैं। ये गन्द सुनते ही उसके मन मे अव्यवसाय उत्पन्न हुआ-'मैने यह नाम कहीं सुना है।" इस पर बारबार ऊहापोह करते हुए उसे जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ और उसे याद आया कि उसने महावीर प्रभु से व्रत ग्रहण किया था, उसमें शिथिलता आ गयी थी, वावडी बनवाने का मनोरय उत्पन्न हुआ था और उसकी आसक्ति से उसकी यह दशा हुई है। अब उसने यह विचार किया-"मे भी महावीरप्रभु के दर्शन करूँगा।"