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आत्मतत्व-विचार आपको कितनी ही बार शुभ अध्यवसाय होते है, लेकिन टिकते नहीं: इसीलिए आत्मविकास नहीं होने पाता। __ आप कभी गुस्से में आये हुए हो और अशुभ अध्यवसायो मे चढे जा रहे हो, लेकिन अगर कोई प्रिय व्यक्ति अथवा कोई सज्जन आकर आपको दो शब्द हित के कहे, तो गात हो जाते है और शुभ अध्यवसाय में आ जाते है। ___ अध्यवसायो के बदलने मे निमित्त काम करते है; यह भूलना न चाहिए । आप अभिमान में आ गये हों और दूसरे को तुच्छ गिन रहे हो, इतने में बाहुबली जी की व्यानस्थ मूर्ति का चित्र देखने में आ जाये तो आपका अध्यवसाय तुरन्त बदल जाता है। और, आपके मन में यह प्रश्न जरूर खड़ा हो जाता है-'"हे जीव ! तू क्या कर रहा है ? बाहुबली सर्वस्व त्याग करके ध्यान मे खडे रहे, लेकिन अभिमान का जरा-सा अग रह जाने के कारण केवलजान प्राप्त न कर सके। जन भगवान् ऋषभदेव ने ब्राह्मी और सुन्दरी को भेजा और उन्होने बाहुबली को समझाया और बाहुबली महामुनि ने अभिमान छोडा तो अव्यवसायों के परम शुद्ध होते ही केवलजान प्राप्त हो गया। पर, हे जीव ! तू तो अभिमान से ओतप्रोत है, तेरा क्या हाल होगा ?"
तीर्थ, मदिर, उपाश्रय, सद्गुरु समागम, उत्सव-महोत्सव यह सब अध्यवसायों के शुद्ध करने के प्रबल निमित्त है और इसीलिए महापुरुषो ने उनकी जोरदार सिफारिश की है; यह हमेशा याद रखना चाहिए । शुभ निमित्त कमजोर पडे कि अशुभ अव्यवसाय आप पर जोरदार हमला कर देंगे और आपके जीवन की बानी बिगाड़ डालेंगे।
आत्मा के परिणामों या अध्यवसायों की शुद्धि ही भाव-धर्म है। भगवान् ने उसे दान, शील और तप से भी उत्तम माना है; कारण कि भाव न हो तो यह कोई क्रिया न तो शोभा देती है न अपना पूरा फल