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अध्यवसाय
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उसके बाद त्रुटिताग, त्रुटित, अटटाग, अटट, आदि अनेक प्रकार के माप है । उनमे १९४ अक को एक संख्या को शीर्ष-प्रहेलिका कहते है ।
इस प्रकार जब संख्यात की गणना रुक जाती है, तब असख्यात की गणना शुरू होती है । पल्योपम और सागरोपम इसी जाति के माप है । एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा, और एक योजन गहरा गड्ढा चालो के छोटे-से-छोटे टुकड़ों से ऐसा ठसाठस भर दिया जाये कि अगर उसपर से चक्रवर्ती की सेना भी चली जाये, तो भी द नहीं, फिर उसमें से सौ वर्ष पर एक टुकड़ा निकालते जायें तो जितने वर्षों मे वह गड्ढा न्युली हो उतने काल को पल्योपम कहते हैं । और, ऐसे दस कोडाकोड़ी ( यानी १० करोड ४ करोड ) पल्योपम-काल को सागरोपम कहते है । किसको कैसा स्थितिबंध होता है ?
आपको सागरोपम का ख्याल बराबर आ गया होगा ।
यहाँ आयुष्य का उत्कृष्ट स्थितित्रध ३३ सागरोपम का बतलाया है, चे सर्वार्थसिद्धि विमानवासी जीव को तथा सातवें नरक के जीव को होता है । शेष सात प्रकृतियों का उत्कृष्ट स्थितिवध मिथ्यादृष्टि पर्याप्त सज्ञी पचेन्द्रिय जीव को होता है ।
अन्तर्मुहूर्त के आयुष्य की नघन्य स्थिति तियंच और मनुष्य इन दो प्रकार के जीवों को होती है और शेष प्रकृतियो की जघन्य स्थिति सूक्ष्मसापराय अर्थात् दसवें गुणस्थान पर वर्तते जीव को, मनुष्य को होती है । गुणस्थानक का विचार आगे आयेगा, अभी तो उसका नामोल्लेख ही किया गया है ।
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अभ्यवसायों की तरतमता — लेश्या
अध्यवसायों की तरतमता को लेश्या कहते है और वह रसध का मुख्य कारण है। कर्म बॉधते समय जैसा तीव्र-मद रस बॉधा हो, और फिर फेरफार हुआ हो तो तदनुसार उसका तीव्र मद फल भोगना पड़ता है ।