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अध्यवसाय
३५३ इतना याद रखिये इतनी बात याद रखिए कि, जितना रस ज्यादा, उतना कर्मबध तीन और जितना रस कम उतना कर्मबंध ढीला ! पुण्य कार्य यदि वीर्योल्लास से किये जायेंगे, तो उससे तीव्र पुण्यवध होगा और उनका फल बहुत शुभ मिलेगा । उसी प्रकार सिद्धान्तानुसार धर्मक्रिया करने से पुण्यानुबन्धी पुण्य मिलेगा । लेकिन, रस लिए बिना यदि उत्साह से या निरुत्साह होकर किया जायेगा तो फल साधारण मिलेगा। इसलिए जब भी धर्मक्रिया करें, तो आनन्द-उत्साह-रसपूर्वक करें, ताकि उसका फल सुन्दर मिले। और, सासारिक या पापमय कार्य करने पड़ें तो दुःखी दिल से करें, तो कर्मवध मद होगा और उसका विशेष दुःख फल न भोगना पड़ेगा।
लेश्या के विषय में कुछ प्रश्न प्रश्न-लेश्याओ के नाम रगों के अनुसार रखे गये है, इसमें कोई हेतु है ?
उत्तर-आत्मा द्वारा ग्रहण किये गये जो पुद्गल लेश्या-रूप से परिणमते हैं, वह द्रव्य लेश्या कहलाते है और आत्मा के अध्यवसाय भावलेश्या कहलाते हैं । द्रव्य लेश्या को वर्ण, गध, रस और स्पर्श होते है। उसमे जिस लेश्या का जैसा वर्ण, यानी रग हो, उसे उसी नाम से कहा है। रगवाले नामो के क्रम से लेश्याओं का शुद्धता-क्रम भी परिलक्षित हो रही है । जिसके अध्यवसाय अधमाधम हों, उसकी द्रव्यलेश्या कृष्ण यानी काले रंग की होगी । इसी प्रकार सब लेश्याओं के विषय में समझ लेना चाहिए।
प्रश्न-क्या इससे यह समझना चाहिए कि अध्यवसायों का भी रग होता है ?
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