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कर्म का उदय
कुछ दिनों बाद वह सेठ फिर ज्योतिषी के पास गया और उससे अपने ग्रहों के विपय मे पूछा । ज्योतिषी ने कहा-"आपके ग्रह बलवान हैं । आपको कोई बाधा नहीं आ सकती।"
सेठ फिर राजसभा में गया । राजा ने उसका सम्मान किया। मगर, उसने राजा का पैर पकड़ कर उसे घसीट कर नीचे पटक दिया। सारी सभा में खलबली मच गयी। सुभट मारने दौडे। इतने में सिंहासन के पीछे की दीवार खिसक पड़ी । यह देखकर राजा बड़ा प्रसन्न हुआ'अहो! यह उपकारी न आया होता, तो आज जरूर दब कर मेरी जान चली गयी होती।' उसने सेठ को दस हजार रुपये इनाम में दिये।
वस्तुपाल-तेजपाल सोने का चरू दबाने जंगल में गये, वहाँ उन्हें एक चरू और मिल गया। यह सब पुण्य का फल है। पुण्य हो तो धन मिले
और पाप का उदय आने पर अनेक पीड़ायें और रोग पैदा हो। आजकल कैसे-कैसे यंत्र, हथियार और अणुबम आदि निकले है कि, क्षण भर में लाखों आदमियों का नाश हो जाय ! जैसा भाग्य होता है, वैसे निमित्तों की ओर मनुष्य खिंचता है और दुर्भाग्य के योग से बरबाद होता है ।
६ महीने बाद वह सेठ फिर ज्योतिपी से अपने ग्रहोंका हाल पूछने गया । ज्योतिषी ने फिर वैसा ही आश्वासन दिया।
सेठ बाहर से आ रहा था और गाँव के प्रवेशद्वार में प्रविष्ट होने ही वाला था कि, वहाँ उसने राजा को देखा जो कि आज पैदल घूमने निकला था। साथ में कुछ लोग भी थे। राजा ने दरवाजे में घुसते ही सेठ को देखा । वह खुश होकर मिलने आगे बढा, तो सेठ ने उसे ऐसे जोर से धक्का मारा कि वह दूर जा पड़ा और उसके दाँत से खून निकलने लगा । साथ के लोग सेठ की ओर लपके । उधर नगर का जीर्ण प्रवेशद्वार टूट कर गिर गया । राजा और उसके साथी बच गये।
राज सोचने लगा-"यह सेठ कैसा उपकारी है। इसने मुझे तीन बार बचाया है, इसलिए इसबार तो इसे कोई बड़ा इनाम देना चाहिये ।"