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तेईसवाँ व्याख्यान
अध्यवसाय
महानुभावो ।
कर्म के विषय में हम आगे बढते जा रहे है और उसकी परिभाषा से क्रमशः परिचित होते जा रहे हैं। आज कर्म - साहित्य में बारबार प्रयोग होनेवाले 'अध्यवसाय' शब्द से आपको परिचित कराना है ।
अध्यवसाय का अथ
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किसी साहित्यकार से पूछिए - " अध्यवसाय का अर्थ क्या है ?" तो, वह तुरत कहेगा - " प्रयत्न, मेहनत या उत्साह ।" यह प्रश्न किसी दार्श -- निक से पूछें तो उनसे भिन्न उत्तर मिलेगा । नैयायिक उसका अर्थ 'निश्चय' करते हैं । वेदान्ती उसका अर्थ 'बुद्धि-धर्म ' करेगे । साख्यमत वाले कहेंगे कि, अध्यवसाय का अर्थ 'वृत्ति' या 'ज्ञान' है । लेकिन, हम जैन 'आत्मा के परिणाम' को सूचना के लिए उसका उपयोग करते हैं । अध्यवसायः अर्थात् आत्मा का परिणाम !
अध्यवसाय की महत्ता
विचार, लगन, इच्छा ये सब आत्मा के परिणाम पर अवलवित है; इसलिए अध्यवसाय का स्थान जीवन-निर्माण मे अत्यन्त महत्वपूर्ण है । अगर, अध्यवसाय शुभ हो तो जीवन उत्तम बनेगा और अशुभ अध्यवसाय खराबी पैदा करने में कोई कसर नहीं रखते । प्रगति और अवनति अध्यवसायो पर ही निर्भर है, यह बात आपके मन में बराबर बैठ जानी चाहिए ।