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श्रात्मतत्व-विचार
है । इसलिए हमे चाहिए कि हमेशा शुभ भावना, शुभ मनोवृत्ति रखें और जानियो की बतायी हुई सत् क्रियाओ में लगे रहे। जिसने सारा जीवन पापमय प्रवृत्तियो मे बिताया हो, खराब काम किये हो, तुच्छ भावनाये रखी हो, वह आयुष्य-कर्म बाँधते समय दुर्गति का आयुष्य बाँधता हैं । यद्यपि इसमें भी अपवाद है । बहुत से लोग सारी जिन्दगी अच्छी तरह बिनाते हैं, मगर जब आयुष्य कर्म बंधने का समय आता है, तभी उनकी भावना या मति बिगड जाती है, जिससे कि वे दुर्गति का आयुष्य बाँधते है । उसी तरह बहुत से लोग ऐसे होते है कि सारा जीवन खराब बिताते हो, लेकिन जब आयुष्य बाँधने का समय आये तभी उनकी मति मुधर जाती है और वे सद्गति का आयुष्य बॉधते है । परन्तु ये अपवाद हैं । राजमार्ग तो वही है, जो ऊपर बतला दिया गया है ।
हमें अपने जन्म की तिथि मालम है, मगर अपने मरण की तारीख नहीं मालम | इसलिए, हमें सदैव सावधान रहना चाहिए और अच्छे काम करते रहना चाहिए ।
सख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य और तिर्येच अपने जीवन के तीसरे भाग में आयुष्य बाँधते हैं, जैसे अगर किसी की आयु ६० वर्ष की है, तो वह ४० वर्ष पूरा होते ही आयुष्य बॉधेगा । उस समय उसकी उम्र का तीसरा भाग बाकी रहता है । अगर वह उस समय आयुष्य न चॉधे, तो जितने वर्ष बाकी रहे है, उनके तीसरे भाग में बॉधेगा अर्थात् १३ वर्ष और ४ महीना और व्यतीत कर बॉधेगा, और अगर उस वक्त न बाँधे तो बाकी बचे ६ वर्ष और ८ महीने के तीसरे भाग में बॉधेगा । इसी तरह आयुष्य का तीसरा भाग करते जाये । अगर इनमें से किसी समय आयुष्य-कर्म न बॉबे, तो आखिर मरण के समय अन्त मुहूर्त मे बॉधेगा | लेकिन, बॉधेगा जरूर |
ज्ञानीजन कहते हैं कि, आयुष्य का बंध बहुत करके पर्व-तिथियो के दिनों में होता है, इसलिए उन दिनों धर्माराधन विशेष परिमाण में करना