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योगवल
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ज्ञानबल से तुरन्त जान ली और उसे अपनी पीठ से फेक दिया। वह समुद्र के अगाध जल मे गिरे उससे पहले रयणादेवी ने उसे खड्ग की अनी पर लेकर बींध डाला।
इस तरह जिनरक्षित का बुरा हाल करने के बाद, वह जिनपालित के पीछे पड़ी और उसे विचलित करने के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न करने लगी। लेकिन, वह चलायमान नहीं हुआ । आखिर रयणादेवी अत्यन्त निराश होकर जिधर से आयी थी उधर चली गयी।
सेलक-यक्ष ने चम्पा नगरी के पास एक मनोहर उद्यान में पहुंचकर निनपालित को अपनी पीठ से उतारा और लौटने की इच्छा प्रकट की। जिनपालित ने उसका बड़ा आभार माना और विटा दी।
जिनपालित अपने घर पहुंचा और प्रारम्भ से अन्त तक सारी कथा सुनायी। माता-पिता ने जिनरक्षित का बड़ा गोक किया और सगे-सम्बन्धियों के साथ मिलकर उसकी लौकिक क्रिया की ।। ___ एक बार महावीर प्रभु चंपा नगरी के पूर्णभद्र चैत्य में पधारे । जिनपालित उनका उपदेश सुनने गया और वैराग्य पाकर प्रबजित हुआ। अनुक्रम से उसने ग्यारह अगों का अध्ययन किया और अन्त समय एक मास का अनशन करके सौधर्मकल्प में देव-रूप से उत्पन्न हुआ। वहाँ से च्यव कर वह महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होगा और सर्व कर्मों को काट कर सिद्ध, बुद्ध, निरजन होगा। ___ इस जगत में बहुत-से मनुष्यो की स्थिति सार्थवाह के पुत्र-जैसी ही होती है। वे धन-लोभ को काबू में नहीं रखते और अधिकाधिक धन पाने के लिए चाहे-जैसे साहस-दुःसाहस करने के लिए प्रेरित होते हैं । ऐसा करते हुए वे संकट में फंस जाते हैं और मरण की शरण होते हैं । उस समय न तो अन्त समय की आराधना हो सकती है, और न पूर्वकृत् पापों का पर्यालोचन हो सकता है। परिणामतः वे दुर्गति के भागी होते है और
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