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यात्मतत्व-विचार
इन पॉच शरीरो मे से किसी भी शरीर की प्राप्ति कराने वाला गरीरनाम कर्म है।
उपांग मस्तक, दो हाथ, दो पैर, उदर, पीठ, जॉघ, आदि अग और उँगली, नाक, आँख, कान, जीभ, आदि उपांग और नख, रेखा, वाल, रोम आदि अगोपाग पहले तीन गरीरो को होते है। इसलिए उपाग के तीन भेद माने गये है। औदारिक उपाग, वैक्रियक उपाग और आहारक उपाग । यहाँ उपाग शब्द से अग, उपाग और अंगोपाग समझना चाहिए।
बंधन-पहले बाँधे हुए और नये बँधते हुए कमां को साथ जोड़े, एकमेक करे, सो बन्धन नामकर्म कहलाता है। उसके पाच प्रकार है--(१)
औदारिक बन्धन, (२) वैक्रियक बन्धन, (३) आहारक बन्धन, (४) तेजस चन्धन और (५) कार्माण बन्धन ।
कर्म की सत्ता के आश्रित १५ बन्धन है । वे यह है-(१) यौटारिकऔदारिक-मिश्र, (२) औदारिक-तेजस, (३) औदारिक-कार्मण, (४) औदारिक-तैजस-कार्मण, (५) वैक्रियक वैक्रियक-मिश्र, (६) वैक्रियक तैजस, (७) वैक्रियक-कार्मण, (८) वैक्रियक-तैजस-कार्मण, (९) आहारक आहारक मिश्र, (१०) आहारक तेजस, (११) आहारक कार्मण, (१२) आहारक-तैजस-कार्मण, (१३) तेजस-तैजस-मिश्र, (१४) तैजस-कार्मण और (१५) कार्मण-कार्मण ।
संघात--टराँती जैसे घास के समूह को इकट्ठा करती है, वैसे ही मघात नामकर्म औदारिक आदि पुद्गलो को इकट्ठा करता है। उसके 'पॉच प्रकार है-(१) औदारिक-सघात-नामकर्म, (२) वैक्रिय-संघात नामकर्म, (३) आहारक-संघात-नामकर्म, (४) तैजस-संघात-नामकर्म और (५) कार्मण-सत्रात-नामकर्म ।
संहनन अर्थात् शरीर का वन्धन, वह ६ प्रकार का है : वज्रऋषभनाराच आदि।