________________
३३४
आत्मतत्व-विचार
इस तरह १४ पिंडप्रकृतियो की ७५ उप-प्रकृतियाँ हुई जो प्रकृति अकेली हो, पिंडरूप न हो वह प्रत्येकप्रकृति कहलाती है । उसके आठ प्रकार हैं: (१) अगुरुलघु, (२) उपघात, ( ३ ) पराघात, (४) आतप, (५) उद्योत, ( ६ ) य्वासोच्छवास, (७) निर्माण और ( ८ ) तीर्थङ्कर ।
अगुरुलघुनामकर्म : इस कर्म के उदय से जीव को ऐसा समशरीर प्राप्त होता है, जो न अति भारी होता है, न अति हल्का ।
उपघातनामकर्म : इस कर्म के उदय से जीव चोरटॉत, रसोली अधिक उँगली, कम उँगली, आदि से उपघात या दुःख पाता है ।
पराघातनामकर्म : इस कर्म के उदय से जीव अपनी उपस्थिति या वचनबल से दूसरे पर अपना प्रभाव डाल सकता है ।
आतपनामकर्म : इस कर्म के उदय से जीव का शरीर तापयुक्त होता है। सूर्य के विमान में पृथ्वीकाय के जीव हैं । उनका शरीर शीतल होते हुए भी दूर से वे दूसरो को ताप देते हैं। उन्हें आतपनामकर्म का उदय समझना चाहिए। उनके सिवाय और किन्हीं जीवो को आतपनामकर्म का उदय नहीं होता । अग्नि में रहनेवाले जीव को आतपनामकर्म का उदय होता है या नहीं ? इसका उत्तर यह है कि उन्हें आतपनामकर्म का उदय नहीं होता वरन् उष्णस्पर्श और लालवर्ण का उदय होता है ।
* पाठक की सुविधा के लिए उसकी तालिका नीचे दी जाती है
१ गति ४
२ जाति ५
३ शरीर ५.
४ उपाग ३
५ वधन १५
६ सवात ५ ७ सहनन ६
संस्थान ६
६ व ५
१० रम ५
११ गथ २
१२ स्पर्श
१३ श्रनुपूर्वी 6 १४ विहायोगति
कुल ७५
--