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आत्मतत्व-विचार
दोनो में पैर रखे होते हैं और सब धर्मों को अच्छा मानते हैं। तात्पर्य यह कि वे सत्य-असत्य का विवेक नहीं करते; सत्य का आग्रह नहीं रखते ।
जिसके कारण आत्मा मिथ्यात्व मे रहे उसे मिथ्यात्वमोहनीय कहते है।
जिस धर्म में विपयो से वैराग्य है; कपाय का त्याग है; आत्मा के गुणो के साथ अनुराग है एव सिद्धान्तानुसार चारित्र है; उससे किसी को हानि नहीं पहुंच सकती । ऐसा ही धर्म सच्चा है और वही मुक्तिदायक हो सकता है । जिस धर्म का देव वीतरागी हो और जिसके साधु-सन्त त्यागी हो उसी का आराधन करना चाहिए । कुछ लोग सावु होकर हिंसा करते है; झूठ बोलते है, चोरी करते हैं, चोरी कराते है, उनकी सेवाभक्ति करने से भला क्या लाभ होगा ?
बावाजी की बात एक बाबाजी अपने चेले के साथ चले ना रहे थे। रास्ते मे गन्ने का एक खेत आया । उसे देखकर उसके मुंह में पानी आ गया। उसने चेले से कहा-"यह थैला लेकर खेत मं जा और उसमें जितनी भरी जा सके गन्ने भरकर ला!" मालिक की अनुमति के बिना कुछ भी लेना चोरी है, लेकिन स्वाद का रसिया इस बात का विचार कहाँ करता है ?
चेला होगियार था । वह गुरु की आज्ञानुसार खेत में घुस गया और अपना काम करने लगा । बाचानी बाहर खड़े रहकर पहरा देने लगे। इतने में उन्होंने चार किसानो को हाथ में भाले लेकर आते देखा । बाबानी पत्रराये । उन्हें लगा कि अगर चेला गन्ने तोडता हुआ पकड़ा गया तो अच्छी तरह पीटा जायेगा और गुरु होने के कारण मुझ पर भी मार पडेगी; ट्सलिए कोई ऐसी तरकीब करनी चाहिए कि किसान आगे न बढ़े और चेला सही-सलामत बाहर निकल आये।
उन्होंने सुरीले गले मे गाना शुरू किया 'संत पकड़ लो संत पकड़ लो आ गये गर्भाधारी।' बाबाजी का कठ मधुर था, गाने की