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पाठ कर्म
३२५ कपायो को उद्दीप्त करने वाली नौ प्रकार की नोकपाये हैं( १ ) हास्य, ( २ ), रति, ( ३ ) अरति, ( ४ ) भय, (५) गोक, (६) जगुप्सा, (७) पुरुषवेद, (८) स्त्री-वेद और (९) नपुसकवेट ।
जीव को हँसी आती है, उसे हास्य-मोहनीय-कर्म का प्रभाव जानना चाहिए । विषय सामग्री मिलने से रति अर्थात् प्रीति होती है, उसे रतिमोहनीय-कर्म का प्रभाव जानना चाहिए । जीव को इष्ट की अप्राति और अनिष्ट की प्राप्ति के कारण अरति अर्थात् अप्रीति होती है, यह अरतिमोहनीय-कर्म का प्रभाव जानना । उसी प्रकार भय, गोक, जुगुप्सा, घृणा, भी उस प्रकार के मोहनीय कर्म के कारण होते है।
जीव को स्त्री-संसर्ग की लालसा करानेवाला पुरुषवेद-मोहनीय-कर्म है, पुरुष ससर्ग की लालसा करानेवाला स्त्रीवेद-मोहनीय-कर्म है, और स्त्री तथा पुरुष दोनो के संसर्ग की लालसा करानेवाला नपुंसक-वेद मोहनीय-कर्म है।
जैसे चपल बन्दर कभी एक जगह शात होकर नहीं बैठता, वैसे ही मोहनीयकर्म के कारण आत्मा चचल बन जाती है और अनेक प्रकार के सावध कार्य करती रहती है। इसलिए मोहनीय कर्म को आत्मा का कट्टर शत्रु समझना चाहिए।
मोहराना का चार अक्षर का मत्र है 'अह मम' यानी 'मै और मेरा अभिमान-अहकार मोह की मिल्कियत है, वह आत्मा को दबाती है, फिर भी आदमी नित्य इस मत्र को रटता रहता है। जानी पुरुष इस मंत्र मे फकत एक अक्षर वढाने के लिये कहते हैं-"नाह, न मम' 'मै कुछ नहीं हूँ, मेरा कुछ नहीं है।" इस मत्र का जप करने से मोह को जीता जा सकता है और भयकर भवसागर को पार किया जा सकता है।