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बाईसवाँ व्याख्यान आठ कर्म
महानुभावो !
'अप्पा सो परमपा' यह महापुरुषों का टकसाली वचन है । इसका अर्थ यह है कि, जिस आत्मा की समस्त शक्तियाँ पूर्णरूप से प्रकट हो गयी हैं, वही परमात्मा है । परमात्मा आत्मा से अतिरिक्त कोई भिन्न वस्तु नहीं है ।
यहाँ प्रश्न उठता है कि, आत्मा की शक्ति पूर्णरूप से क्यों नहीं प्रकट होती ? इसका उत्तर यह है कि, उन पर जड़ कर्मों का प्रभाव है, जड़ कर्म का दबाव है । इस कारण वह पूर्ण प्रकट नहीं होती ।
कर्म क्या है ? उनकी क्या शक्ति है ? आत्मा उनका बन्ध किस प्रकार करता है ? यह आपको पहले समझाया जा चुका है । चार कर्मों का वर्णन हो चुका है, शेष चार कर्मों का वर्णन शेष है । वह आज किया जाता है ।
आयुष्य-कर्म
जिस कर्म के कारण आत्मा को एक शरीर में अमुक समय तक रहना पड़े, उसे आयुष्य-कर्म कहते है । यह कर्म कारावास के समान है । अपराधीको मुद्दत पूरी होने तक कारावास में रहना पड़ता है, उसी तरह आत्मा को आयुष्य पूरा होने तक एक शरीर में रहना पड़ता है ।
आयुष्य कर्म को उत्तर प्रकृतियाँ चार हैं - ( १ ) देवता का आयुष्य, ( २ ) मनुष्य का आयुष्य, (३) तिर्येच का आयुष्य और ( ४ ) नरक का आयुष्य । देवता के आयुष्य के कारण से जीव देवलोक में उत्पन्न होता