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श्रात्मतत्व-विचार
करेगा तो किसान आ पहुँचेगे और तेरी जूतो से मरम्मत होगी और दूसरी तरह भी पूजा करेंगे ।”
बाबाजी सोच रहे थे कि इन शब्दो के सुनते ही चेला सारी परिस्थिति समझ जायेगा और खेत में से जल्दी निकल आयेगा । लेकिन, चेला बाहर नहीं आया, इसलिए भजन की एक विशेष पंक्ति उच्चारी :
'अन्दर पूजा थारी होशी, बाहर होशी म्हारी'
इन शब्दों से किसानो को यह बोध दिया कि 'अगर तुम सन्तसमागम नहीं करोगे और पाप नहीं छोड़ोगे तो अन्दर से तुम्हारी पूजा होगी, अर्थात् नरक जैसे भयकर स्थानो में परमाधामी के हाथो मारपीटरूपी पूजा होगी और 'हमारी' यानी तुम्हे उपदेश न दें तो तुम्हारी रोटियाँ खानेवालों की 'बाहर' यानी तिर्यञ्च गति में तुम जैसों के हाथो मारपीट रूपी पूजा होगी ।" चेले के लिए तो यह साफ चेतावनी ही थी कि 'अब तू जरा भी देर लगायेगा तो किसान आकर तुझे मारेंगे और तेरे गुरु के तौर पर मुझे भी मारेंगे ।"
चेला होशियार था । उसने दस-बारह गन्ने उखाड़ लिये थे और उसके टुकड़े कर डाले थे । वह उन्हें थैली में भर रहा था । यह काम पूरा करते ही वह बाहर निकल आना चाहता था, पर यहाँ गुरुजी के धैर्य का अन्त आ गया था, इसलिए उन्होने एक और पक्ति ललकारी :
'रामनाम को रट कर चेले, टपजा परली क्यारी'
इन शब्दों से किसानो को यह बोध था "मेरे प्यारो ! तुम राम का नाम लेकर ससार की परली पार पहुँच जाओ ।" और शिष्य को यह चेतावनी थी कि “अब खतरा बहुत बढ गया है, इसलिए राम का नाम लेता हुआ परली तरफ की क्यारी से बाहर निकल जा । इस तरफ आयेगा तो किसानों की नजर पड़ जायेगा ।"
इस वक्त शिष्य का काम पूरा हो गया था, इसलिए वह थैला लेकर