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पाठ कर्म
३२१ दूसरी तरफ के खेत मे होकर बाहर निकला। बाबाजी ने उसे देखते ही सतोप की साँस ली और आगे चलने लगे। किसान तो भजन सुनने मे इतने लीन हो गये थे कि, उन्हें मालम ही न पड़ सका कि क्या हो गया।
लेकिन, इस तरह चोरी करनेवाले और करानेवाले की गति कैसी होगी? __ सद्गुरु तो स्वय भी तरता है और शिष्य को भी तारता है। वह शिष्य के लिए अहितकर उपदेश कभी नहीं करेगा। इसलिए, गुरु त्यागी
और निःस्पृही मिलेगा तभी शिष्य का उद्धार कर सकेगा, इसलिए ऐसे त्यागी गुरु को खोजकर उसकी तन, मन और धन से खूब सेवा करके अपना कल्याण करना चाहिए।
हम आपको कम का स्वरूप आपके हित के लिए ही समझा रहे है। आज तक कों ने आपका बड़ा ही अहित किया है, फिर भी आप उनकी टोस्ती नहीं छोड़ते ! 'नाटान की दोस्ती, जी का जलाल', यह कहावत्त
आपने सुनी होगी। लेकिन, नादान दोस्त की सुहबत छोड़ते कहाँ है ? हम चाहते हैं कि, आप यह दोस्ती छोड़े और इसीलिए उनकी दुष्ट प्रकृति से, उनके दुष्ट स्वभाव से आपको परिचित करा रहे है।
जिसके कारण आत्मा का मूल गुण-रूप चारित्र का रोध हो वह चारित्रमोहनीय-कर्म कहलाता है। एक वस्तु जान लेने पर भी आचरण में नहीं लायी जा सकती, इसलिए मानना पड़ेगा कि चारित्र का रोध करने वाली कोई वस्तु है।
चारित्र मोहनीय कर्म की कुल २५ प्रकृतियाँ है। उनमे १६ प्रकृतियाँ 'कषाय' कहलाती हैं और ९ प्रकृतियाँ 'नोकषाय' कहलाती हैं । दर्शनमोहनीय कर्म की उत्तरप्रकृतियाँ और चारित्रमोहनीय कर्म की कुल उत्तरप्रकृतियाँ २८ होती हैं।
क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार मुख्य कप्राय हैं। उनमें से हर