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आठ कर्म
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निद्रा मे जीव उपयोग लगाने की स्थिति में नहीं होता; इसलिए निद्रा के पाँचों प्रकार दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियाँ माने गये है । जिस नींद से आसानी से उठाया जा सके वह निद्रा है । जिससे कठिनाई से उठाया जा सके वह निद्रानिद्रा है । वैठे-बैठे या खड़े-खड़े आने चाली जिस नींद मे आसानी से जगाया जा सके वह प्रचला है । चलते-चलते आने वाली जिस नींद से कठिनाई से जगाया जा प्रचला है । और, जिसमें दिन में सोचा हुआ कार्य कर जागने पर खबर न पडे ऐसी गाढ निद्रा को स्त्यानर्द्धि निद्रा के समय बड़ा बल उत्पन्न होता है ।
सके वह प्रचलाडाला जाये और कहते है । इस
इस साधु को एक भैसा देखा ।
एक राजपूत साधु हो गया। वह पूर्वजीवन मे मासाहारी था। लेकिनसाधु हो जाने के बाद तो मास का त्याग होता ही है। - स्त्यानर्द्धि-निद्रा आती थी। एक बार उसने रास्ते में उसे देखकर साधु को विचार आया "ऐसे मस्त भैंसे का मास खाने को 'मिले तो कैसा अच्छा हो ।" लेकिन, साधुजीवन के कारण वह विचार विचार ही रहा ।
अब रात हुई और उसे स्त्यनर्द्धि-निद्रा का उदय हुआ । वह नींद ही नींद में उठा, उसने उस भैंसे को पकड़ा और उसे किसी तीक्ष्ण शस्त्र से मारकर उसका मास खाया और बाकी बचे हुए मास को आकाशी पर सूखने के लिए डाल दिया और आकर अपने स्थान पर सो गया ।
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सुबह कुछ साधु आकाशी मे गये, वहाँ मास देखकर स्तब्ध रह गये । ऐसी पवित्र जगह में मास कहाँ से आया ? उन्होंने देखभाल की तो उस -राजपूत-साधु के कपड़े खून से सने हुए देखे । उससे इस बारे में पूछा गया तो जवाब मिला "मुझे कुछ पता नहीं है ।" बाद में मालूम हुआ कि उस राजपूत साधु को स्त्यानर्द्धि-निद्रा आती है और उसी ने निद्रा में भैंसे का वध करके यह मास यहाँ रखा है । तब उस साधु को निकाल दिया गया, क्योंकि स्त्यानर्द्धि-निद्रावाला चारित्र के योग्य नहीं होता ।