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आत्मतत्व-विचार हैं, लेकिन स्मरण नहीं आती। कुछ देर बाद वह स्मरण आ जाती है ।' इसका अर्थ यह हुआ कि, विस्मृति के समय भी जान तो था ही, अन्यथा कुछ देर बाट याट कैसे आती ? जान था और विस्मृत हो गया-इसका क्या कारण ? कारण यही है कि, स्मरण न आते समय ज्ञान पर आवरण था, जान को रोकनेवाली कोई वस्तु वहाँ मौजूद थी। वह हट गयी कि, याद आ गयी । जैसे अगर दीपक कपड़े से ढका हो तो प्रकाश नहीं आता। उसको हटा दें तो तुरत प्रकाश आ जाता है। इसी रूप में जान को भी समझना चाहिए।
जान पाँच प्रकार का है : (१) मतिनान, (२) श्रुतिजान, (३) अवधिनान, (४) मनःपर्ययज्ञान और (५) केवलजान इसलिए जानावरणीय की उत्तर प्रकृतियाँ भी पाँच प्रकार की है । मति, श्रुति, अवधि, मनःपर्यय और केवलजान का आवरण करने वाले कर्म क्रमशः मतिनानावरणीय, श्रुतिनानावरणीय, अवधिनानावरणीय, मनःपर्ययजानावरणीय और केवलजानावरणीय कहलाते हैं।
जीव ६ कारणो से जानावरणीय-कम का उपार्जन करते हैं :
(१) ज्ञान, जानी तथा ज्ञान के साधनो के प्रति शत्रुता रखना, विरोधभाव दाना, यहाँ जान से मति आदि जान, जानी से जानवान अर्थात् साधु, पडित, आदि और जान के साधनों से पुस्तक, लेखनी, आदि समझना चाहिए।
(२) जानदाता गुरु का नाम छिपाना । (३) जान, ज्ञानी या जान के साधनो का नाश करना । (४) ज्ञान, ज्ञानी या ज्ञान के साधनों के प्रति द्वेष करना ।
* इन शानों के विशेष परिचय के लिए देखिये आठवाँ, नौवों और ग्यारहवाँ
व्याख्यान।