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आत्मतत्व-विचार
सेठानी को स्वच्छन्द-विहार का चटखारा लगा हुआ था, दूसरे सिरफिरी, शर्त क्या कबूल करती।
इधर सेठ भी आन पर आ गया था। बडी रकझक के बाद भी उसने दरवाजा नहीं खोला । तब सेठानी ने कहा-"दरवाजा खोलो, नहीं तो मैं कुँए मे गिर मरूँगी, लेकिन तुम्हे लिखकर तो दूंगी नहीं ।'
पास ही कुंआ था। मेट यह सोचकर कि कहीं सचमुच अपघात न कर बैठे, ढीला पड़ गया। उधर सेठानी ने एक बडा पत्थर उठा कर कुए में पटका। उसका आवाज कान में पड़ते ही सेठ ने समझा कि सचमुच गिर गयी, इसलिए दरवाजा खोलकर कुंए की तरफ लपका।
इधर सेठानी कुँए मे पत्थर डालकर छुपे-छुपे घर के पास आ गयी थी और दीवार की आड में खड़ी हो गयी थी। दरवाजा खुला देखकर वह अन्दर घुस ही गयी और उसने अदर से दरवाजा बन्द कर लिया। उसकी आवाज कान में पडते ही सेठ दौडता हुआ वापस आया। उसने सेठानी से दरवाजा खोलने के लिए कहा। पर, अम सेठानी का हाथ ऊपर था । बोली-"सारी रात घूमते हो और जागरण कराते हो । शर्म नहीं आती || अब तो लिखकर दोगे कि इस तरह कभी बाहर नहीं फिरोगे, तभी दरवाजा खुलेगा।" __इसे कहते हैं-"चोरी और सीनाजोरी!" अपराधी स्वय है और दवाती जा रही है मेट को | "उल्टा चोर कोतवाल को डॉटे।" ____ मेठ ने बडी अनुनय-विनय की, पर सेठानी न मानी। इतनी रात गये कोई सुन न ले इस ख्याल मे सेठ धीमे बोलता है तो सेठानी का स्वर ऊँचा होता जाता है । यह हालत देखकर सेठ ने कहा-"तूने कुँए में गिरने का डौल करके मुझे चकमा दिया, पर मैं सचमुच कुँए में गिरता हूँ। ऐसी जिन्दगी मे तो मर जाना अच्छा ।" यह कहकर वह कुँए की तरफ बढने लगा।