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कर्म की पहचान
२५३ कर्म की जानकारी प्राप्त करने से पहले, पुद्गल की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए, क्योकि कर्म पौद्गलिक वस्तु है।
पुद्गल अणु-रूप में भी होता है और स्कन्ध रूप में भी। हमने प्रकाश में उड़ते हुए अत्यन्त सूक्ष्म रजकण देखे ही है, पर उनसे भी अत्यन्त सूक्ष्मतर पुद्गल-कण होते हैं, जो नगी ऑखो से तो क्या अत्यन्त प्रवल सूक्ष्मदर्शक यत्र (माइक्रॉसकोप ) से भी नहीं देखे जा सकते । पुद्गल के सूक्ष्मातिसूक्ष्म अग को, जिसके कि किसी प्रकार भी आगे टुकड़े नहीं हो सकते, 'अणु' कहते हैं। जिससे अधिक छोटी कोई चीज नहीं उसे ही 'परमाणु' कहते हैं। वह किसी भी सूक्ष्मदर्शक से नहीं देखा जा सकता है।
एक परमाणु जब दूसरे परमाणु से मिल जाता है, तब 'स्कध' बनता है । दो परमाणुओ का द्वयणक, तीन परमाणुओं का त्रयणक, चार परमाणुओं का चतुरणक, असंख्यात परमाणुओ का असंख्याताणक और अनन्त परमाणुओं का अनन्ताणक स्कन्ध बनता है । इस प्रकार स्कन्धो की सख्या अनन्तानन्त है। . स्कन्ध के बने रहने का जघन्य काल एक समय है, मध्यम काल लाखकरोड अरब वर्प, उत्कृष्ट काल असख्यात वर्ष है । उसके बाद वह नष्ट हो जाता है और टूटकर अणु-परमाणु के रूप में आ जाता है। ये परमाणु मिलकर फिर 'स्कन्ध' बन जाते हैं । इस प्रकार पुद्गल में टूटने जुड़ने की क्रिया होती ही रहती है । इसलिए शास्त्रकारो ने उसको गुणनिष्पन्न नाम'पुद्गल'—दिया है।
बड़े स्कन्ध टूट कर छोटे स्कन्ध बनते हैं। छोटे स्कन्धो से मिल कर बड़े स्कन्ध बनते रहते हैं। जितनी वस्तुएँ दिखलायी देती हैं वे सब परमाणुओं के मिलने से ही बनी हैं और इसी कारण वस्तुओं में परिवर्तनशीलता नजर आती है।