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कर्मवन्ध
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धर्मी कितने हैं ?
मगधपति महाराज श्रेणिक अपनी सभा में बैठे हुए थे । विविध प्रश्नो । की चर्चा चल रही थी । वहाँ एक प्रश्न उठा कि - "हमारे नगर में धर्मी अधिक हैं या अधर्मी ?” सबने एक ही जवाब दिया- "धर्मी" । लेकिन, अभयकुमार को इस उत्तर से सन्तोप नहीं हुआ । उनने कहा - " इस दुनिया मे निर्दयी अधिक हैं, दयावान् कम, असत्यवादी अधिक हैं सत्यबादी कम चोर वृत्ति वाले अधिक हैं प्रामाणिक कम; विषयी अधिक है, ब्रह्मचारी कम है । हम भी इस दुनिया के एक भाग है, इसलिए हमारे यहाँ भी धर्मियों की अपेक्षा अधर्मी अधिक होने चाहिए ।" लेकिन, उनकी यह बात किसी को मान्य न हुई ।
मत्रीश्वर अभयकुमार बुद्धिनिधान थे और समयज्ञ थे, इसलिए उन्होने उस वक्त विवाद करना फिजूल समझा । सोचा - यह बात समय आने पर सिद्ध करके बता देनी चाहिए। बाद में उन्होने राजगृही नगरी के बाहर दो बड़े महल तैयार कराये। एक बिलकुल सफेद, दूसरा बिलकुल काला । इन दोनो महलों के बीच में एक सुन्दर बगीचा बनवाया उसमें ऐसा प्रबंध रखा जिसमें कि हजारो आदमी बैठ सकें ।
एक दिन मत्रीश्वर अभयकुमार ने वहाँ एक उत्सव रखा जिसमे भाग लेने के लिए बहुत से स्त्री-पुरुप आये । अभयकुमार ने उन्हें उद्देश कर कहा - " आप में से जो धर्मी हों, वे सफेद महल में जायें और जो अधर्मी “हों वे काले महल में चले जायें ।" वहाँ उत्सव की समस्त व्यवस्था है
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सफेद महल लोगो से खचाखच भर गया । काले महल में सिर्फ इनेगिने लोग पहुँचे। थोड़ी देर बाद वहाँ जाकर अभयकुमार ने पूछा - " आप क्या धर्म करते हैं कि इस सफेद महल मे आये हैं ?" उस समय कसाई ने कहा - "मैं जीव न मारूँ और उसका मास न बेचूँ, तो मास खाने वाला क्या खाये ? इस प्रकार नियमित मास की पूर्ति करके मैं अपने धर्म का