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योगवल
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आत्मप्रदेश में आन्दोलन किससे होता है ?
आत्मा का स्वभाव सयोग अर्थात् कारण मिलने पर आन्दोलित होने का है । कारण न हो तो वह बिलकुल स्थिर रहता है । उदाहरण के लिए, मिद्धभगवतो के आत्मप्रदेश बिलकुल स्थिर है, कारण कि वहाँ आत्मप्रदेशो को आन्दोलित करनेवाला कारण विद्यमान नहीं है ।
यहाँ यह स्पष्ट कर दे कि, आत्मा के समस्त प्रदेश आन्दोलित होते है । लेकिन, उनके मध्य मे जो आठ रुचक- प्रदेश है, वे आन्दोलित नहीं होते । चे आठ प्रदेश स्थिर रहते है । इसका कारण उनका स्वभाव है ।
आत्मप्रदेशो को आन्दोलित करने का कारण दो प्रकार का होता है - एक वाह्य और दूसरा अभ्यन्तर । वाह्य कारण को 'अभिसधि' कहते है और उससे होनेवाले योग को 'अभिसधिन-योग' कहते है । अभ्यतर कारण को अनभिसंधि कहते हैं और उससे होने वाले योग को 'अनभि संधिज-योग' कहते हैं ।
खाना, पीना, हिलना, चलना, दौडना आदि वाह्य कारण है । उनसे आत्मप्रदेशो मे जो आन्दोलन होता है, वह अभिसधिज-योग है । उसमे प्रयत्न की मुख्यता होती है ।
आप गात बैठे हो या सो रहे हो, तब भी आपके आत्मप्रदेश मे आन्दोलन चलता रहता है । आपकी नाड़ी उस समय भी चलती रहती है, आपका हृदय उस समय भी धड़कता रहता है । यह अनभिसधिजयोग है | उसमे प्रयत्न की आवश्यकता नहीं होती ।
योगस्थानक
योग का बल हर समय समान नहीं होता । उसमे सयोगवशात् कमीबेगी होती रहती है । इस कमी- बेशी को ही 'योगस्थानक' शब्द से सूचित किया जाता है | यदि किसी मशीन की शक्ति बताना होता है तो 'हार्स -