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योगवल
२६७ उम्र घट गयी । भाषा के कितने ही प्रयोग कुछ-का-कुछ अर्थ दर्शाते है । जैसे रोग से जब आँखें लाल बन जाती है । तो कहते हैं 'ऑखें आ गयीं', 'परन्तु तथ्य तो यह है ऑखें जाने को तैयार होती है। किसी के पेट में 'पीडा होती है, तो पुराने विचार वाले पौने को गरम करके उससे दाग देते है। और, उसे नाम देते है कि-'टडा कर दिया। एक मनुष्य को दो पलियाँ हो । एक दूसरी को शोक्य माने और एक दूसरी से भयकर इर्ष्या करे, पर दोनो बह्न कहलाती है। अपने देश में गोला नाम की एक जाति है । वह दलने, कूटने आदि की मेहनत-मजदूरी का काम करती है । पर वे लोग कहलाते है-'राणा' । इसी प्रकार आप कहते हैं कि 'मेरी उम्र बढी ।' पर, यह एक प्रकार का भ्रामक भाषा-प्रयोग है। सच बात तो यह है कि उम्र बढती नहीं घटती है।। ____ किसी ने एक विद्वान से पूछा-'क्यो भाई, सकुशल हो ?? उसने जवाब दिया--'जहाँ हर रोज उम्र कम होती जा रही हो, वहाँ कुशल कैसी ?' पर, आपको उसकी कोई चिन्ता नहीं है। इसलिए आप इसे अपना कुगल माने बैठे है और आयुष्य को ऊँटपटाग रूप मे गॅवा रहे हैं।
महापुरुप कहते हैं :उत्थायोत्थाय बोधव्यं, किमद्य सुकृतं कृतम् । आयुपः खण्डमादाय, रविरस्तमयं गतः॥ -~-उठ-उठ कर विचार करो कि, आयुष्य का एक टुकड़ा लेकर सूर्य तो अस्ताचल के समीप गया, इस बीच मैंने क्या सुकृत किया ?
लेकिन, जो प्रमाद या मूढतावश गहरी नींद ले रहे है, वे न तो उठते है, न जागते है और यदि जागते भी है तो विचार नहीं करते ।
आयुष्य-कर्म जीवन मे एक बार बॅधता है और वह भावना, मनोवृत्ति या क्रिया के अनुसार बॅधता है। वह शुभ हुई तो आयुष्य सद्गति का बंधता है और अगर अशुभ हुई तो दुर्गति का बॅधता