________________
कर्म की शक्ति
२६१
कर्म - पुद्गल है, 'जड है', इसलिए उसमें क्या शक्ति होगी ? ऐसा न मानिये । जड रेशो की बनी रस्सी बडे-बड़े हाथियो को भी बाँध सकती है । जड़ वस्तुओं से बनी हुई शराब आदमी को मदहोश कर देती हैं । as Tम का धड़ाका कितनी बरवादी करता है ! 'क्रिकेट' की गेंद के आकार वाले एटम बमों ने हिरोशिमा और नागासाकी को नष्ट-भ्रष्ट -कर दिया था ! अब तो उससे भी पॉच सौ गुनी शक्ति वाला हाइड्रोजन - म निकला है । तात्पर्य यह है कि 'जड' में अनन्त शक्ति होती है और इसीलिए वह आत्मा की शक्ति को, आत्मा के गुणों को दबा सकने मे समर्थ है ।
"
शायद आपको का होगी कि "जब 'आत्मा' और 'कर्म' दोनो की शक्ति अनन्त है; दोनो समान शक्ति वाले है, तो फिर कर्म आत्मा की शक्ति को, आत्मा के गुणो को, कैसे दबा सकते हैं ?" इसका समाधान यह है कि, आत्मा की शक्ति पूर्ण विकास पाने पर अनन्त होती है— अर्थात् निश्चय नय से 'आत्मा की शक्ति अनन्त है; लेकिन अगर व्यवहार नय से देखें तो 'उस शक्ति में बड़ी तरतमता है' । इसलिए, प्रारम्भ मे वह अति अल्पशक्ति वाला होता है । पीछे धीरे-धीरे शक्ति का विकास करता जाता है । और, अन्त में अनन्त तक पहुँचता है । इन परिस्थितियो मे I अति बलवान कर्मसत्ता उसे दबा सकती है। लेकिन, यह नान रखना चाहिए कि, आत्मा की अन्तिम अनन्त शक्ति कर्म की अनन्त शक्ति से कहीं अधिक होती है, इसलिए वह कर्म-शक्ति को हराकर उसका सम्पूर्ण नाश कर सकने में समर्थ होती है । जैसे दो मनुष्य, दो घोडा, दो हाथी मैं अन्तर होता है, उसी प्रकार दो अनन्तों में भी अन्तर होता है, यानी एक अनन्त बड़ा बलिष्ट और दूसरा छोटा और कमजोर हो सकता है
1
दूसरा विश्व-युद्ध प्रारम्भ हुआ तब ब्रिटेन और फ्रांस के सैनिको को चुरी तरह हार मिली और चारों ओर हिटलर का जयजयकार हो रहा था । ऐसा लगता था कि, हिटलर की सेना सब देशों को बहुत जल्दी