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अठारहवाँ व्याख्यान
कर्म की शक्ति
महानुभावो!
जैसे वैद्यक के साथ रसायन का निकट सम्बन्ध है, वैसे ही आत्मा का कर्म के साथ अत्यन्त निकट सम्बन्ध है। परन्तु, यह विषय सूक्ष्म है-सुई को छिद्र के समान सूक्ष्म है, लेकिन कोशिश करेंगे तो अपना मन-रूपी डोरा उसमें पिरो सकेंगे।
शुरू में क, ख लिखना कितना कठिन लगता था, लेकिन प्रयत्न जारी रखने से आप सब वर्ण लिखना सीख गये। आज तो आप सारी वर्णमाला एक मिनट मे लिख सकते हैं।
प्रयत्न को कायम रखनेवाली श्रद्धा है; इसलिए आपका हृदय श्रद्धा से ओतप्रोत होना चाहिए | निपट मूर्ख भी श्रद्धापूर्वक प्रयास करते रहने से पडित बन गये, तो आप-सरीखे उच्च शिक्षा प्राप्त सज्जन श्रद्धापूर्वक प्रयत्न करने से क्या नही कर सकते ?
प्रारम्भ मे बालको को दूध नहीं पचता, इसलिए उसमें पानी मिलाकर दिया जाता है। बाद में शुद्ध दूध भी उन्हें पचने लगता है। हम भी
आपको ठोस जानरूपी दृध को युक्ति, अनुभव और दृष्टान्तों का जल मिलाकर देते हैं, ताकि उसे पचाने मे आपको कठिनाई न हो। ___यहाँ जो-कुछ कहा जाये, उसे आप एकाग्रचित्त से सुनें और समय मिलने पर गहरा विचार करें । इससे आपको आनन्द आयेगा। आपकी
आत्मा प्रसन्न होगी । जान में आनन्द देने का विलक्षण गुण है। जानी मनुष्य साधनरहित अवस्था में भी अपूर्व यानन्द लेता रह सकता है ।