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कर्म की शकि
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नमोत्थुण सूत्र में आप उनकी स्तुति करते हुए 'पुरिसुत्तमाणं पुरिस सीहाणं पुरिसवरपुंडरी पाणं, पुरिसवर गंधहत्थीणं' आदि कहते है। इसका अर्थ है कि, तीर्थकर सब पुरुषो में उत्तम होते है । तीथङ्करो का उत्तम पुरुषत्व सिद्ध होते हुए भी, उन्नीसवें तीर्थङ्कर श्री मल्लिनाथ ने अबला का अवतार पाया । यह भी क्या कम आश्चर्य की बात है ? महाबल कुमार के भव मे उन्होने बड़ी तपश्चर्या की थी, लेकिन उसमें कुछ मायाका सेवन हुआ था। इसलिए इस भव मे उन्हे स्त्री-वेद का कर्म उदय मे हुआ ।
चक्रवर्तियो का भरीर उत्तम लक्षणो से युक्त और अत्यन्त सुन्दर होता है। वे सर्वांग सुन्दर होते हैं। फिर भी ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को अन्धापन प्राप्त हुआ और वह उन्हें सोलह वर्ष तक भोगना पडा। यह कर्मजनित आश्चर्य नहीं तो क्या है ? ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती अन्वे क्यो हुए, यह भी यहाँ प्रसगवश बता दें।
ब्रह्मदत्त चक्रवती की कथा एक बार एक ब्राह्मण मित्र ने ब्रह्मदत्त से आग्रह किया-"कल अपने कुटुम्ब-सहित आपके यहाँ भोजन करूँगा।" ब्रह्मदत्त ने कहा-"भाई। मेरा भोजन ऐसा है कि मुझे ही पच सकता है, इसलिए मेरे यहाँ जीमने की बात रहने दो।" लेकिन, ब्राह्मण मित्र ने हठ की, इसलिए ब्रह्मदत्त ने उसका कहना स्वीकार कर लिया। दूसरे दिन ब्राह्मण सपरिवार राजमहल मै जीमने गया । वहाँ उन्होने अत्यन्त तीव्र मादक पदार्थों से बनाया हुआ भोजन किया। उससे उनके होश-हवास ठिकाने न रहे, मनोवृत्ति अत्यन्त चचल हो गयी और वे भान भूल कर अकल्प्य, अभोग्य, अयोग्य क्रीड़ा करने लगे । सुबह जब नगा उतरी, तो अयोग्य क्रीड़ा करने पर अत्यन्त लज्जित हुए। ब्राह्मण ने समझा कि ब्रह्मदत्त ने जानबूझकर मुझे कुछ खिला दिया कि मेरी हालत ऐसी हो गयी । इसलिए देख लेना चाहिए । एक ब्राह्मण चक्रवर्ती का क्या कर सकता है---ऐसा आपको