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कर्मवन्ध
आत्मा कर्म-बंधनयुक्त है ___ यहाँ यह जान लेना आवश्यक है कि आत्मा को कर्म का बधन न हो तो सभी आत्माओ की समान अवस्था हो; क्योकि आत्मत्व सभी मे समान है। लेकिन, हम देखते है कि, कितनी ही आत्माएँ स्वर्ग में उत्पन्न होकर देवता का सुख भोग रही है और कितनी ही आत्माएँ नरक मे उत्पन्न होकर नारकी-रूप में घोर वेदना का अनुभव कर रही है, कितनी आत्माएँ तिर्यंच-रूप उत्पन्न होकर अनेक प्रकार के दुःख भोग रही है, कितनी
आत्माएँ मानव-कुल में उत्पन्न होकर मनुष्य-रूप मे जीवन व्यतीत कर रही हैं। मनुष्यत्व मे सब के समान होने पर भी सब की अवस्था समान नहीं है । उनमें कोई राजा है, तो कोई रक है, कोई श्रीमंत है तो कोई भिखारी है, कोई पण्डित है तो कोई मूर्ख है, कोई स्वरूपवान है तो कोई कुरूप है, कोई निरोगी है तो कोई रोगी है। जगत के समस्त वैचित्र्य के पीछे कारण कर्म है। ___मूर्त कर्मों का अमूर्त आत्मा पर असर होता है
'क्या मूर्तकर्मों का अमूर्त आत्मा पर असर हो सकता है ?'—यह प्रश्न अक्सर पूछा जाता है, इसलिए इसका भी निराकरण कर दें। मूर्त वस्तु अमूर्त वस्तु पर असर डाल ही न सकती हो, ऐसा कोई नियम नहीं है । ज्ञान अमूर्त है, फिर भी मदिरा आदि का उस पर बुरा असर होता है, दूध आदि का अच्छा असर होता है। लेकिन, यह समझ रखना चाहिए कि, ससारी आत्मा सर्वथा अमूर्त नहीं है, वह कदाचित मूर्त भी है। जैसे आग मे डालने से लोहा अग्निमय हो जाता है, वैसे ही ससारी आत्मा का कर्मों से अनादिकाल से सम्बन्ध होने के कारण, वह कमरूप बन जाती है, इसलिए वह कदाचित मूर्त भी है, और मूर्त वस्तु का मूर्त वस्तु पर असर हो ही सकता है । इसलिए, कर्म का आत्मा पर असर होता है, ऐसा मानने में कोई बाधा नहीं है।