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कर्म की पहचान
२५७ समस्त लोक में 'पुद्गल' और 'कार्माण वर्गणाएँ' सर्वत्र व्याप्त है, इसलिए चौदह राजलोक के किसी भी भाग में रहनेवाली आत्मा इन 'कार्माण-वर्गणाओ' के पुद्गलों को तुरन्त ग्रहण कर सकती है। ग्रहण किये जाने के बाद वे जब आत्मप्रदेशो में ओतप्रोत हो जाते हैं, तब वे 'कर्म' कहलाते है।
__ 'इसे कर्म ही क्यो कहते हैं ? और कोई नाम क्यो नहीं दिया? इसका उत्तर यह है कि दुनिया में कुछ नाम 'गुणनिष्पन्न होते हैं, कुछ 'रूढ' । कुरूप आदमी का नाम भी रूपचन्द्र हो सकता है। अगड़ाल आदमी का नाम भी शातिलाल हो सकता है। ये नाम 'रूढ' हैं। पर, नाम में क्या रखा है ? नाम कुछ भी दिया जा सकता है। आप ठनठनपाल की वार्ता सुनें तो नाम विषयक आपकी का दूर हो जायेगी ।
ठनठनपाल की बात एक सेठ सब प्रकार से सुखी था, लेकिन उसका कोई लड़का बारह महीने से अधिक नहीं जीता था । उसे ६ लड़के हुए, मगर सब इसी प्रकार मर गये । जब सातवॉ लडका पैदा हुआ तो उसका नाम ठनठनपाल रखा । योगानुयोग से यह लड़का बालमरण से बच गया और बालक्रम से जवान हुआ।
लोग उसके नाम का तरह-तरह से मजाक उड़ाते। कहते-"तेरा नाम ठनठनपाल क्यो रखा गया है ? यह तो बड़ा शर्मनाक नाम है । और, कुछ नहीं तो ठन..."ठन - पाल ” चिढकर एक दिन अपने पिता से वह कहने लगा-"पिताजी ! दुनिया में नामों की क्या कमी थी कि आपने मेरा नाम ठनठनपाल रखा १ यह नाम बडा खराब लगता है। मेरा नाम बदल दीजिये।"
पिता ने कहा-"बेटा | आदमी का नाम तो जिन्दगी में एक ही