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श्रात्मतत्व- विचार
लेकर हम क्या करेंगे ? ऐसी मुक्ति मे जाने से तो वृन्दावन में गीटड बनना अच्छा ताकि सुन्दर ग्वालिनो का मुँह तो देखने को मिले ।"
कामभोग की चरम आसक्ति उससे ऐसे शब्द कहलवाती है । लेकिन, जो जगत् और जीवन का तमाम रहस्य जान गये हैं, ऐसे महापुरुष कहते हैं कि
सल्लं कामा विसं कामा, कामा आसी विसोवमा । कामे य पत्थमाणा, प्रकामा जंति दोग्गई || कामभोग शल्यरूप हैं, विषरूप हैं, विषधर सर्प के समान अत्यन्त भयकर है। कामभोग की लालसा रखने वाले प्राणी उन्हें प्राप्त किये बिना ही अतृत दगा मे एक दिन दुर्गति को प्राप्त होते हैं ।
खणमेत्त सोक्खा चहुकाल दुक्खा, पगामदुक्खा श्रणिगाम सोक्खा | संसारमोक्खस्स विपक्ख भूया, खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ॥ 'कामभोग क्षणमात्र सुख देनेवाले हैं और चिरकाल दुःख देनेवाले है । उनमे सुख बहुत कम है और दुःख बहुत अधिक हैं। वे मोक्षसुख के शत्रु हैं और अनर्थों की खान हैं।
तात्पर्य यह है कि भोग की आसक्ति छूटने पर ही मुक्ति का अनन्त सुख भोगने की पात्रता प्राप्त होती है ।
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इस विश्व में मुक्ति, मोक्ष या निर्वाण ही एक ऐसी अवस्था है, जहाँ किसी प्रकार का दुःख नहीं है । आप पूछेंगे कि सर्वत्र दुःख है तो वहाँ क्यो नहीं है ? इसका जवाब यह है कि 'इस विश्व में दुःख के कारण हैंभूख, प्यास, रोग, शोक, भय, खेद, उपद्रव, आक्रमण, पराधीनता, परतत्रता, जन्म, जरा, मृत्यु आदि, इनमें से एक भी कारण वहाँ विद्यमान नहीं है ।'