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आत्मतत्व-विचार
कर्मरहित शुद्ध आत्मा को हम सिद्ध भगवत या सिद्ध परमात्मा कहते है । ऐसे सिद्ध परमात्मा आज तक अनन्त हो गये हैं। वे सब सिद्धशिला के ऊपर लोक के अग्र भाग में स्थिर हो गये है।
सिद्धो को दुःख का अत्यन्ताभाव होता है और विशुद्ध आत्मिक सुख का अनन्त सद्भाव रहता है। उनका सुख वस्तु-सयोगजन्य नहीं है, इसलिए उन्हें अपने सुख के लिए किसी अन्य वस्तु की अपेक्षा नहीं रहती। सुख आत्मा का स्वभाव है, इसलिए प्रतिबन्धक कारणो के दूर हो जाने पर वह सुख का अनुभव करने लगता है और अनन्त काल तक उस सुख का अनुभव करता रहता है। ___ कोई आदमी दीर्घकाल से कैदखाने में पडा हो और विविध यातनाएँ भोगता हो, लेकिन अगर उसे एकाएक छोड़ दिया जाये तो कितना आनन्दित होता है ! उसी प्रकार जो आत्मा अनन्त भवो से कर्म-बन्धन म पड़ा हुआ असख्य यातनाएँ भोगता आया हो, वह कर्मबन्धन से सर्वथा छूट जाने पर कितना आनन्द पाता होगा। आपकी कल्पना के परम सुखी मनुष्य से भी मुक्तात्मा अनन्तगुना सुखी होता है ।
शास्त्रकारो ने चक्रवर्ती को भोगपुरुप कहा है, कारण कि मानुपिक भोगो में वह इन्द्र के समान होता है। सारा भरतक्षेत्र उसके अधीन होता है, सोलह हजार देव उसकी सेवा मे रहते हैं, चौसठ हजार स्त्रिया उसके अन्तःपुर मे रहती हैं, वैक्रियक लन्धि से वह चौसठ हजार रूप लेकर सब रानियों से एक साथ भोगविलास करता है, उसका शरीर निरोगी और तेजस्वी होता है, जीवन निश्चिन्त होता है; सब राजा-प्रना और सेना उसके प्रति वफादार होते हैं। ऐसे चक्रवर्ती को भी जो सुख होता है उससे मुक्तात्मा का सुख अनन्त गुना होता है।
इन्द्र असख्यात टेवो का मालिक है, लाखो वर्षों तक जवान रहता है, अगणित सुन्दर देवागनाएँ उसकी सेवा में रहती हैं, अनुपम रूपवता