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कर्म की पहचान
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कर्म की जानकारी प्राप्त करने से पहले, पुद्गल की जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए, क्योकि कर्म पौद्गलिक वस्तु है ।
पुद्गल अणु-रूप में भी होता है और स्कन्ध रूप मे भी । हमने प्रकाश मे उडते हुए अत्यन्त सूक्ष्म रजकण देखे ही है, पर उनसे भी अत्यन्त सूक्ष्मतर पुद्गल-कण होते हैं, जो नगी आँखो से तो क्या अत्यन्त प्रबल सूक्ष्मदर्शक यंत्र ( माइक्रॉसकोप ) से भी नहीं देखे जा सकते । पुद्गल के सूक्ष्मातिसूक्ष्म अश को, जिसके कि किसी प्रकार भी आगे टुकड़े नहीं हो सकते, 'अणु' कहते हैं । जिससे अधिक छोटी कोई चीज नहीं उसे ही 'परमाणु' कहते है । वह किसी भी सूक्ष्मदर्शक से नहीं देखा जा सकता है 1
एक परमाणु जब दूसरे परमाणु से मिल जाता है, तब 'स्कध' बनता है । दो परमाणुओं का द्वयणक, तीन परमाणुओं का त्रयणक, चार परमाणुओं का चतुरणक, असख्यात परमाणुओं का असख्याताणक और अनन्त परमाणुओ का अनन्ताणक स्कन्ध बनता है । इस प्रकार स्कन्धो की सख्या अनन्तानन्त है ।
स्कन्ध के बने रहने का जघन्य काल एक समय है, मध्यम काल लाखकरोड-अरब वर्ष, उत्कृष्ट काल असख्यात वर्ष है । उसके बाद वह नष्ट हो जाता है और टूटकर अणु-परमाणु के रूप में आ जाता है । ये परमाणु मिलकर फिर 'स्कन्ध' बन जाते हैं। इस प्रकार पुद्गल में टूटने-जुडने की क्रिया होती ही रहती है । इसलिए शास्त्रकारों ने उसको गुणनिष्पन्न नाम'पुद्गल' – दिया है ।
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बड़े स्कन्ध टूट कर छोटे स्कन्ध बनते हैं। छोटे स्कन्धो से मिल कर बड़े स्कन्ध बनते रहते है । जितनी वस्तुएँ दिखलायी देती हैं वे सच परमाणुओं के मिलने से ही बनी हैं और इसी कारण वस्तुओं में परिवर्तनशीलता नजर आती है ।