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श्रात्मतत्व- विचार
उसके राज्य के हर घर से हम दोनों को एक दिन का भोजन और एक मोहर दक्षिणा मिले ।'
ब्राह्मग पत्नी की इस बुद्धि से खुश हुआ और उसने वहाँ जाकर यही माँगा । इसमें ब्रह्मदत्त को हँसी आ गयी - "इस ब्राह्मण ने माँगा भी तो क्या माँगा !” उसने ब्राह्मण की मॉग स्वीकार कर ली ।
पहले दिन ब्राह्मण और उसकी पत्नी चक्रवर्ती के यहाँ नीमे । विविध प्रकार के अत्यन्त स्वादिष्ट व्यञ्जन थे । इस प्रकार का भी दुनिया मे भोजन होता है, यह उन्होंने पहली ही बार नाना। ऐसे आरोग्यकर भोजन से उनके बत्तीस कोठे रोशन हो गये ! भोजन के बाद एक मोहर दक्षिणा लेकर वे घर आये ।
दारो
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दूसरे दिन प्रधान मन्त्री का नम्बर आया, फिर मंत्रियों का अमलश्रीमतो का नम्बर आया और, अन्त में सामान्य नागरिको का नम्बर आया | पर, ब्राह्मण दम्पति को ये सब भोजन फीके लगे, क्योकि उनकी डाढ मे चक्रवर्ती के भोजन का स्वाद रह गया था ।
आत्मा का ऐसा सुख कैसे प्राप्त होता है, हमें यह आपको समझना है । उसका जो मार्ग ज्ञानी महाराज ने दिखाया है, उसे बाद मे समझायेगे |
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